Sunday 4 March 2012

प्रेम के आश को कब तक दबाएँ फ़िरते रहोगी...

प्रेम के आश को कब तक दबाएँ फ़िरते रहोगी...

बड़ी मुद्दत है मुस्कुरा कर
आसमान को छूने की,
सम्मंदर से मिले मोती को
इस गले में पिरोने की
खुद को तुम्हारी बांह में
रखकर 'वसंत' में सोने की
रुक-रुक कर ही सही
तुम्हारे 'चाहत की मदिरा' पिने की....

इसे सच समझो या एक दीवाने का सपना
पागल समझो या अपना
ये तो नज़रों की नज़दीकियाँ है
जो दोनों को पास बुलाती है
मुझे-तेरी तुझे-मेरी सूरत दिखाती है......


दिल देकर तुझे मै फ़िसल गया
इश्क में तेरे हद से गुजर गया
तुझे भी एहसास है इस खबर का
जो तुम देख-देख शर्माती हो
बिन कहे कुछ चली जाती हो
वियोग में हुई आँखों की नमी को
ख़ुशी के आंसू बताती हो....ख़ुशी के आंसू बताती हो......




सत्येन्द्र "सत्या"



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