Wednesday 7 March 2012

रंगों की रंगीनियत में झूम उठा हूँ मै....... (अब न बच पायेगी गोरी तू मेरे रंगों कि पिचकारी से)

रंगों की रंगीनियत में झूम उठा हूँ मै.......
  (अब न बच पायेगी गोरी तू मेरे रंगों कि पिचकारी से)


रंग गुलाबी नैन शराबी
लेकर आया तेरे द्वारे पे
अब न बच पायेगी तू गोरी
इन रंगों के फव्वारे से..


लाल- काला नीला -पीला
चेहरा मेरा हर रंगों से गिला
फिर भी होली का रंग अधुरा
जो रंगा नहीं अब तक तेरे हाथो से
मधुर प्रेम के आँखों से...




मेरी पिचकारी भी बेचैन है
तुझको पाने को
रंगों कि प्यास बुझाने को
तो छुपी क्यूँ है बाहर आ जा
होली के रंग में छा जा ..
तब देख मज़ा फिर होली का......तब देख मज़ा फिर होली का......




होली कि बहार आ गई ......

ख़ुशी कि घटा छा गई
रंगों के त्योहारों से 
घर-घर में मिठास आ गई 
मदमस्त होली के फव्वारे से..

जहाँ झूम रहे है सभी 
अपने गिले-शिकवे भुलाकर
एक दुसरे को दोस्ती का गुलाल लगाकर  
प्यार के रंग में नहाकर..

तुम भी अपना मैला जला दो 
होलिका के अंगारे में 
जियो ज़िन्दगी जीभर कर 
रंगों कि ख़ुशी के तराने में ...रंगों कि ख़ुशी के तराने में ...


सत्येन्द्र "सत्या"

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