Wednesday 14 March 2012

हमसे का 'भूल' हुई....जो ये 'सज़ा' हमका मिली!!!!!

हमसे का 'भूल' हुई....जो ये 'सज़ा' हमका मिली!!!

पिछले साल की तुलना में इस बार का बजट कुछ ठीक-ठाक है ऐसा मै नहीं.....बजट समीक्षक एंव पूर्व रेलवे बोर्ड के अधिकतर अध्यक्षों का कहना है पिछले आठ वर्षों से रेल किराए में बढ़ोत्तरी नहीं हुई थी किन्तु रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने इस बजट में रेल किराए में इज़ाफा कर एक अच्छा कदम उठाया वहीँ "जीरो-टक्कर" तकनीक और ठंडी पड़ी भारतीय रेल को एक अलग आयाम देने के तमाम उपाय इस बार के बजट में दिखे..किन्तु इस देश की राजनितिक विडंम्बना देखिये कि यात्री किराए में हुए वृद्धि से यात्री कम राजनेता अधिक खफ़ा हो गए उसमे भी हास्यास्पद बात तो यह रही कि 'पराये कम अपने ज्यादा' ही रेलबजट से आग बबूला थे.....

देखते ही देखते इस बजट ने राजनितिक-गलियारों में बैचानियाँ बढ़ा दी, कल तक जो उम्मीद ज़ता रहे थे कि यह बजट दिनेश त्रिवेदी का कम 'राइटर्स-बिल्डिंग' (ममता बनर्जी) का ज़्यादा होगा वे भी बजट के पश्चात राइटर्स-बिल्डिंग से निकले उस 'क्रोध के चीख' को सुन हक्का-बक्का रह गए क्यूंकि किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि,वह विरोधी सुर स्वयं ममता के होंगे..बस फ़िर क्या था मंत्री जी को लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया कि अब क्या होगा दिनेश त्रिवेदी का?? क्या फ़िर बजट का रोल-बेक होगा?? कहीं इस्तीफ़े कि नौबत तो नहीं आ जाएगी??अंतत: ऐसा ही हुआ ममता ने केंद्र सरकार को रेल मंत्री के हटाने का फरमान भेज दिया ममता के इस  निर्णय ने कई सवाल भी उत्पन्न किये कि, यह दीदी का कोई राजनिति कदम तो नहीं?? क्या सही में उन्हें किराये में हुई बढ़ोत्तरी कि जानकारी नहीं थी?? दीदी अपने बेबाक अंदाज़ के लिए बहुत ही प्रचलित है चाहे वो "माँ- माटी-माणूस" के अपने नारे से वामदलों को हरा सत्ता में आने का हो 'या' रतन टाटा के नेनो प्रोजेक्ट को सिंगुर से हटाने का,या फ़िर नक्सलियों के साथ वार्ता-लाप का दीदी के बयान हमेशा ही सुर्ख़ियों बटोरते है हाल के दिनों में प्रकाश सिंह बादल और अखिलेश के शपथ ग्रहण समारोह में जाने के बयान ने तो सरकार में सहयोगी कांग्रेस के कानों कि घंटी तक बजा दी थी....


बार-बार भ्रमित करने वाले ये बयान ममता के उस छबि की गवाही देता हैं जिसमे 'अवसरवादिता' की साफ़ झलक दिखाई पड़ती है दीदी इस यूपीए गठबंधन से पहले अटलजी के एनडीए गठबंधन का भी हिस्सा रह चुकी है और एक परिपक्व राजनीतिज्ञ होने के कारण 'समय की नज़ाकत' को भी भली-भातिं समझती है कि, कब?? क्या?? और क्यूँ?? करना है! वर्तमान में कांग्रेस भी आंकड़ों के लिहाज़ से इतनी मज़बूत नहीं है की (TMC ) ममता के बिना आसानी से सरकार चला ले बस गठबंधन की इसी कमजोरी को दीदी 'केश करने में लगी है...अथवा किसी कारण देश के राजनितिक हालात गरमाकर भविष्य में तीसरे मोर्चे की ओर अग्रसर होता है  तो उस लिहाज़ से ममता की भागीदारी बड़ी महत्तवपूर्ण हो जाएगी.....रही बात बीजेपी की तो वे अपने इस दीदी का हाथ पकड़ने के लिए सदैव ही तत्पर रहती है ऐसे में "ममता की महँगी मांग" तो लाज़मी है ना........


फ़िर भला खुद को "आम-आदमी" का नेता बतानेवाली ममता आम-आदमी के बढ़ते किराये पर कैसे खामोश रहती मंत्री महोदय का बजट ख़त्म हुआ ही था कि दीदी बोल पड़ी और बोली भी तो ऐसा की 'राजनितिक-भूचाल' आ गया शरू में तो नेताजी (रेलमंत्री) को समझ ही नहीं आया कि इतना विरोधाभाष कैसा ?? परन्तु जब आया तब-तक विदाई समारोह का कार्यक्रम तैयार हो चूका था.… 


आप लोग भी बेमतलब में ही मनमोहन जी को लेकर सोनिया गाँधी को बदनाम करते है अरे भाई ममता और माया को क्यूँ भूल जाते है..अब ज़नाब आप समझिये या मत समझिये मै तो समझ ही गया की महिला-आरक्षण बिल संसद में पास क्यूँ नहीं होता.....


सत्या "नादाँ"







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