शिक़ायतें बहुत हैं तुमसे
वक़्त को बेवक़्त करने की
नर्म... नर्म...
ज़रूरतों को ज़िंदा रख
जिस्म को जर्ज़र करने की
कभी आईना कभी आंचल
कभी जाम.. कभी ज़ीनत..
आहिस्ता.. आहिस्ता...
दिल में ख़ुद को बसर करने की
शिक़ायतें बहुत हैं तुमसे
शिक़ायतें बहुत हैं तुमसे
नशा नज़र को नूर का देकर
फ़िराक़ में चाँद के चूर कर जाना
शहर....... के अंदर शहर
बे अदब... बे क़रार बादलों सा
रूह.. रूह.. बदन का
कागज़-क़लम-किताब तर जाना
ज़बान.. ज़बान.. ज़ख्म़ लिए
एक क़फ़स में क़ैद ज़िन्दगी
ज़बान.. ज़बान.. ज़ख्म़ लिए
एक क़फ़स में क़ैद ज़िन्दगी
ख़्वाहिशों से टकरा-टकरा कहती
शिक़ायतें बहुत हैं तुमसे
शिक़ायतें बहुत हैं तुमसे.......
सत्या "नादाँ"