Monday 19 March 2012

"मेरी माँ"

मेरी माँ.....

मुझे जीवन के सांचे में ढाली वो
'ममता की चादर' से पाली वो
हर क्षण चिंता में डूबी मेरे लिए
हर ख़ुशी को संजोती मेरे लिए
मेरे गिरते कदमों को संभाला उसने
मेरे हर स्वप्न को संवारा उसने.....


मेरा लहू उसमे व्याप्त
'रक्त की गंगा' की धारा है
मेरी सांस की हर धड़कन
उसके 'तपस्या की माला' है
और मै जो भी हूँ आज वो
उसके 'संघर्ष की गाथा' है

स्वयं आंसू में खोई पर मेरे
आँखों को नम होने न दिया
नीद के ख़ातिर लोरियाँ सुनाई
किन्तु खुद को सोने न दिया
हृतु दर हृतु ठिठुरी,तपी,भीगी,
पर मुझे कुछ होने न दिया
कष्ट की हर व्यथा सही वो
पर मेरे चेहरे से मुस्कान
को अलग होने न दिया.....

माँ उस 'समर्पण' की कहानी है
जिसका जग में न कोई 'सानी' है
माँ वह 'ज्ञान की ज्योति' है
जिसके प्रकाश से होता उद्धार है
माँ..माँ..माँ...और माँ
माँ की व्याख्या में शब्द भी कम है
क्यूंकि माँ ही संसार का जीवन है
क्यूंकि माँ ही संसार का जीवन है.......

(किन्तु बदली परिश्थितियों में
कवि अपने ह्रदय से कुछ कह उठा)

सत्येन्द्र देख 'सत्या' अब रो रहा
कि क्यूँ कोई पुत्र अपनी माँ को
'व्यर्थ की माया' में पड़
बेबस है छोड़ रहा.........बेबस है छोड़ रहा.........




सत्येन्द्र "सत्या"

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