Monday 16 December 2013

कुछ बदला भी है मेरे जाने के बाद ???



कुछ बदला भी है मेरे जाने के बाद
ज़ोर अब भी है चीख अब भी
शहर शहर दुराचारिता के गीत अब भी है
कहीं ऐसा तो नहीं
कि मैं बस वो इतिहास बन कर रह गई
जिसकी कहानी आंसू से शुरू होती
और आंसुओं पर ही ख़त्म हो जाती
जिसका ना ही कोई सबक है ना ही सूत्र
नगर नगर मोम सी जलती ज़रूर
पर रोशनी बन जगमगा नहीं पाती
मुझे तो हर बार दर्द होता
जब जब मेरा मेरे से सरोकार होता
कभी मुंबई के शक्ति मिल में
कभी उन गुमनाम गलियों में
हर बार ख़बरों की ख़बर "तहलका" ही होती
लेकिन असर फिर वही सियासी शोर
ना कानून का डर ना सभ्यता का शर्म
बस दोष दोष मेरा है
कभी मेरी आज़ादी का दोष..... कभी मेरे कपड़ों का
कभी मेरा श्रृंगार दोषी..... कभी मेरा व्यवहार दोषी
सदैव दोष दोष ही मेरा दर्पण रहता
इस पुरुष प्रधान देश में.......


तो क्या बदला ??? तो क्या बदला ???
तो क्या बदला ??? तो क्या बदला ???






सत्या "नादाँ"

Sunday 8 December 2013

यह "आप" का विश्वास है...

यह "आप" का विश्वास है

यह "आप" का विश्वास है

यह "आप "का प्रकाश है
झाड़ू ने दे दी है चुनौतियाँ
कचरा बहुत हुआ बर्दाश्त है
"राज" नीति की शोर में
"कर्म" नीति का यह आगाज़ है
यह "आप" का विश्वास है
यह "आप "का प्रकाश है

ठोस था रोष था नज़र नज़र अफ़सोस था
शहर भर दुराचारीता बढ़ती जा रही
प्रशासन का यह कैसा प्रकोप था
पानी पानी को बेहाल दिल्ली
हाथ के विकास का यह कैसा खेल था
सियासी धरातल के द्वार से खड़ा
शीला के अंहकार पर चट्टान सा पड़ा
अरविन्द आप की जीत का प्रतिकार है
वक़्त के बदलाव का भव्य बहार है
यह "आप" का विश्वास है
यह "आप "का प्रकाश है

यह एक शुरुवात है
जो ख़ास ही ख़ास है
ना धर्म की ना जात की
यह हर आम आदमी की आस है
भारत हो बड़ा पर्वत हो या धरा
तिरंगे की अदभुत पहचान हो
शोर्य का धैर्य का मानवता की लहर का
यह "आप" का विश्वास है
यह "आप "का प्रकाश है

सत्या "नादाँ"

Sunday 1 December 2013

नज़्म (नज़र के निशान)

नज़्म (नज़र के निशान)

जलते अरमानों के साथ चलना
ये कैसा सफ़र है
शिकवा सिसक सिसक आँखों से बहता
ख्वाहिशों पर ज़िद का कैसा असर है
साहिल शाम संजीदा करे अब क़हर सा लगे लगा
लहरों में साँसों की तड़प ये कैसा पहर है
मुराद पूरी ना हुई या कोशिशें थीं अधूरी
जज़्बातों का ज़हन में ज़हर सा बनता कैसा घर है
ख़ामोश लब्ज़ जिस्म में गूंजती व्यथाएँ
दिल सहने की सीमाओं का कैसा शरहद है
ज़र्रा ज़र्रा सजा है खुदगर्ज़ फ़िज़ा से
ख़ुशी के शहर में मायूसी का ये कैसा पल है
ज़रूरत में भी ज़ुर्रत ना हुई हक़ीम तक जाने की
ज़िन्दगी जुदा जुदा मौत मझधार पड़ी
दूरियां रह रह कर दस्तक़ देती चाहतों पर
वक़्त ठहरता नहीं लम्हा लम्हा रुका रुका सा
कल कल था आज भी कल है
इंतज़ार-ए-आरज़ू का ये कैसा सब्र है
जलते अरमानों के साथ चलना
ये कैसा सफ़र है.......ये कैसा सफ़र है......ये कैसा सफ़र है

सत्या "नादाँ"