Monday 13 November 2017

"दिल" बच्चा ही अच्छा था....

"दिल" बच्चा ही अच्छा था....

ना कपट था
ना कशिश थी
हाँ..... किताबें
थीं
चित्रों से सजी हुई
ज़हन में सनी हुई
उलझनों से बेख़बर
उस उम्र के आग़ोश में

आज "दिल"
एक शहर है
धुओं की धुंध में पड़ा
हैरान - परेशान
नफ़रतों को समेटे
ज़ज़्बातों से जंग करता
इश्क़ की तलाश को

जब बचपन था
तो ख़ुशी थी....
पर मुझे पता नहीं
आज जवानी जानती है
उसके मायने
पर ख़ुशी है कि, जल्द आती नहीं !!!!

सत्या "नादाँ"

Tuesday 19 September 2017

उफ़ !!!! ये बरसात...

खड़ी गाड़ी
पड़ी गाड़ी
गाड़ी पर चढ़ी गाड़ी
सब हैरान से चेहरे
तनाव ग़हरे के ग़हरे
सच.... सोच को रुला रही है
क़शमक़श ज़िन्दगी
इंतज़ार इंतज़ार में
सर्द सहमी सिमटी जा रही है
वो मुझे देखे
मै उसे देखूं
नज़र नज़र से
कुछ बता...
कुछ छिपा रही है 
घूर घूर घड़ी देखते सारे
मोबाइल जेब की...
रुक रुक बजती जा रही है
सब्र अब बेसब्र होने लगा
भीगी ज़मीन भीगा जिस्म
आज
भीगी भीगी सारी उम्मीदें हैं
शहर समझ ही नहीं पा रहा
भीड़ भय में...
तितिर.... बितिर
पसरती जा रही है
उफ़ !!!! ये बरसात...
उफ़ !!!! ये बरसात...

सत्या "नादाँ"


Tuesday 25 July 2017

"शहर की वो बरसात"

"शहर की वो बरसात"

पानी में पसरा
रास्ते को रास्ते से जोड़ता वो पूल
क़मर तक डूबी गली
से होकर गुज़रते स्कूली बच्चे
नहर बन चुकी सड़क पर
सहमे.. सहमे.. सरकते
टेक्सी ऑटो  बस
और वो लोकल...
जो दुनियाँ को शहर की भागम भाग
ज़िन्दगी से रूबरू कराती
बंद... बेबस... बेचैन...
जलमग्न पटरियों पर खड़ी
वक़्त को कोसती
मुसाफ़िर मुसीबत में
"माया" मुश्क़िल में
भीगी ज़मीन
भीगा जिस्म
पानी पानी प्रलय घोल
मंज़र मेरा मुझे हिलाता
क्यों गगन
हो गया बेरहम
सवाल सवालों से सवाल करता
टूटा नक़्शा मेरा मुल्क़ से
लाश लाश ज़िन्दगी
समंदर... शहर... अश्क़
आज भी उन चोटिल अरमानों के
निशान कहता
शहर की वो बरसात
शहर की वो बरसात
शहर की वो बरसात

सत्या "नादाँ"