"महिलाओं का सम्मान देश का सम्मान"
करुणा से छलकाती
भरी गगरी कि बहार हो तुम
अतुल्य तुम्हारा रूप है
वैभवी जिसका स्वरुप है
तुम ही बहन-तुम ही हो माता
तुम ही किसी के
जीवन कि अर्धांगनी हो....
समाज के हर डगर कि राह है तुमसे
न जाने कितनो कि छिपी आशा
व् मुस्कान है तुमसे
तुम्ही प्यार कि परिकाष्ठा
तुम ही सम्मान कि गाथा हो
तुम बिन सब कुछ सुना-सुना
तुम बिन हिंद सुखा जहाँ
तुम बिन गौरव का "गौरव" नहीं...
तुम बिन नहीं किसी की शान
जो तुम हो धड़कते भारत का 'प्राण'.
जो तुम हो धड़कते भारत का 'प्राण'.....
सत्येन्द्र "सत्या"
splendid!
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