Monday 13 November 2017

"दिल" बच्चा ही अच्छा था....

"दिल" बच्चा ही अच्छा था....

ना कपट था
ना कशिश थी
हाँ..... किताबें
थीं
चित्रों से सजी हुई
ज़हन में सनी हुई
उलझनों से बेख़बर
उस उम्र के आग़ोश में

आज "दिल"
एक शहर है
धुओं की धुंध में पड़ा
हैरान - परेशान
नफ़रतों को समेटे
ज़ज़्बातों से जंग करता
इश्क़ की तलाश को

जब बचपन था
तो ख़ुशी थी....
पर मुझे पता नहीं
आज जवानी जानती है
उसके मायने
पर ख़ुशी है कि, जल्द आती नहीं !!!!

सत्या "नादाँ"