Monday 14 May 2012

"मेरे साठ साल"

"मेरे साठ साल"


मै साठ बरस के 
प्रजातंत्र की मिशाल हूँ 
अतीत की याद से निकल 
वर्तमान की डगर पर खड़ी
भविष्य को निहारती 
मेरे इमारत से 
मुल्क का मुक्द्दर बनता 
मेरे इन दीवारों में 
आपकी आस्था की आवाज़ गूंजती
पर समय के चक्र के साथ 
मेरी दशा बदलती गई
और आलम देखिये कि,
एक साफ़-सुथरी तस्वीर
धूमिल सी नज़र आने लगी है

अपराधियों के दाग से
जनता की सरकार
जनता से दूर जाने लगी है
फिर भी मुझे उम्मीद है कि
लोकतंत्र का विश्वास
जिंदा है कही
क्यूंकि आप मुर्दा नहीं.....

"जिसकी आज़ादी के ख़ातिर वो कुर्बान हो गए
वही आज आज़ाद होकर भी मुर्दा है"

सत्येन्द्र "सत्या"