Tuesday 16 December 2014

तालिबान...

तालिबान...

दिल में दहशत
शहर शमशान
ज़िन्दगी बेबस
ज़ख़्मी जान..
जनाज़े में पड़े वो मासूम से चेहरे
ख़ून... ख़ून ज़मीन
आंसू... आंसू इंसान
बस सरहदों के बीच बंटा
वो... एक मुल्क़ नहीं
मेरा पड़ोसी है
जिसकी ना तो...
ज़मात से मैं जुदा हूँ
ना जुबान से...
सियासी सपेरों की पैदाईश... (तालिबान)
कभी ज़िहाद बन पनपती
कभी लिवास बन...
एक रोज़...
इस बंदूख... बारूद...दहशतग़र्दी
ने एक "मलाला" को भी मारा था
जो अब घर... घर ज़िंदा है
पहचान बनकर
पाक बनकर !!!!!
सत्या "नादाँ"

Thursday 12 June 2014

"आफ़त में आशियाना"

 "आफ़त में आशियाना"

क्यों दू तुम्हे मैं अपना आशियाना
गुना है... चुना है
असर अस्ल तक बुना है
मेरी उम्मीदों का उमंग है ये
यही मेरे सपनों का सच समां है
रूह... रूह में बसी आदत इसकी
बचपन इन दीवारों संग पला है
कभी हंसी... कभी ख़ुशी
ज़िन्दगी ने ग़म भी बांटे इसके मयार में
मौसम ताउम्र गुज़रता गया मुसाफ़िर बन के
और आज भी...
दिल के सुकून का सफ़र
मेरी इमारत मेरा आईना है
निगाह निशाचर सी डाल डराते तुम
मेरी पनाह... मेरा जहाँ हिलाते तुम
कसूर किसका... कशिश में कौन
ज़माने को ज़ुर्म दे
पाठ क़ानून का पढ़ाते तुम
कहाँ ग़ुम थे जब बन रही थी ये
क्यों चुप थे जब चढ़ रही थी ये
खोया... खोया महकमा
तब क्यों सोया पड़ा था
और अब नींद से निकल चहक रहा
जब बीत गया अरसा
ख़ता तुमसे... और ख़त्म मैं
ये कैसी सज़ा है
ये कैसी सज़ा है......

सत्या "नादाँ"

Wednesday 4 June 2014

"हवस" में "हिंदुस्तान"



फिर एक तमाशा मेरी मौत पर लगा है
हवस के हाथ ताक़त
क़ानून जुर्म का नशा है
घर से निकलते ही
माँ कहती... बिटिया ज़रा संभल के जाना
और फिर दबे पावं
पीछे-पीछे... आ जाती सड़क तक
ना चुप रहती... ना ठहरती
बस बेचैनियों संग बहती
मेरे सफ़र को सोच
उसकी सिकन...
बेहया.. बेशर्म.. ये घूरती आँखें बताती
नज़र का नशा थमता नहीं
भूख़ जिस्म की ज़हन में समाती
पहर क्या... क़हर था वो दरिंदगी का
कंगन टूटे... आंसू फूटे...
मैं चीख़ती रही...
दहशत से सोए नगर में
पर कोई ना आया.. पर कोई ना आया..
आज घर सुना सहमा हुआ है
पिता बेबसी में भटके पड़े..
माँ... मातम में डूबी जा रही
मंज़र देख... मुन्ना रोता
कि दीदी बोलती नहीं.. भीड़ आँगन में ये कैसा पसरा पड़ा है
ख़ुशी ख़ौफ़ बन गई ज़र्रे ज़र्रे की
हया हवन में जली जा रही
और मुल्क़ मुद्दो में मरा हुआ है....
सिवा शोर मैं कुछ भी तो नहीं
कल भी दबी थी.. आज भी दबी हूँ
ना जाने ये सिलसिला कब तक चलेगा ???

सत्या "नादाँ"

Sunday 11 May 2014

माँ......

माँ......

मैं कल भी बच्चा था.. आज भी बच्चा हूँ
शायद ये वक़्त मुझसे बढ़ा हो गया है
कभी तेरे हाथों से खाता था खाना
आज वो खाना भी एक ज़माना हो गया है
नज़र नज़र निशान ख़ुदग़र्ज़ी के
शहर ये तरक्क़ी का...
गुमनाम आंसुओं का ठिकाना बन गया है
सुकून-ए-साँसों की नमीं सूखती तुझ बिन
क़दम लड़खड़ाते उम्र के इस पहर में
मोहब्बत मायूस होती जाती...
मुलाक़ातों के असर से.......
ज़र्रा-ज़र्रा दर्द की दास्ताँ कह रहा है
वो रंगत... वो आँचल... वो दुआएं...
बिखरने ना देती... बेचैनियों मे कभी
तू आदत मेरी... तू अमानत मेरी
रोज़ इन दूरियों को समझाउं कैसे
ख़ुशी की ख़बर ज़िन्दगी का बसर
सब तु हीं तो है....सब तु हीं तो है...
माँ......
मैं कल भी बच्चा था.. आज भी बच्चा हूँ
शायद ये वक़्त मुझसे बढ़ा हो गया है !!!

सत्या "नादाँ"

Friday 4 April 2014

"फंदा" ही "हार" है "हैवानों" का !!!

"फंदा" ही "हार" है "हैवानों" का !!!

मिट्टी को मैला किया
पायल को तोड़कर
शक्ति शर्मसार खड़ी
आंसूओ को घोटकर
मै माया हूँ मगर महफूज़ थी
जुर्म के जात से
मेरी दुनियाँ उसकी रंगत
सब शहर की मुस्कान थे
पर वो आँखें हया ही खा गई
हवस के हाथ से
आज डरी है धरा
डरा है बादल
चिड़िया अपनी ही वादियों में
उड़ती संभाल के
मेरी फ़िज़ा फ़िज़ा बदल गई
दहशत के आगाज़ से
मेरी खामोशियाँ अब खौल रही
रोज़ सहना रोज़ मरना
अब नहीं बर्दाश्त है
मौत ही तेरी एक मंज़िल
गुनाह सोच का जो साथ है
बनना है मुझे वो ज़मीं वो सफ़र
जहाँ सुकून साँसों का एहसास है
देकर चोट रहना ज़िंदा
ये मुमकिन नहीं मेरे शहर में
तुझे सूली चढ़ना तो था ही
तुझे सूली चढ़ना तो था ही……

सत्या "नादाँ"

Thursday 20 March 2014

धोनी "कप तान" दो !!!


धोनी "कप तान" दो 



सोच को संवार दे
मुश्किलों को टालकर
धोनी अब दे दना दन
बल्ले से बॉल पर 
विराट विक्राल है 
युवराज तैयार है 
शिखर भुजाएं खोलता 
रविन्द्र प्रलय को बेक़रार है 
संग्राम शौर्यता का प्रहार है 

उमंग दे मलंग दे 
जीत को तरंग दे 
विश्व के भूगोल पर 
तिरंगा ललकार कर 
ये खेल है प्रचंड 
आँख आँख में ठसन 
रण के मैदान से 
दुश्मनो को पछाड़कर 
अपने हौसले को उड़ान दे 
अमूल्य है अतुल्य है 
तू भारतीय का भव्य ग़ुरुर है  
इतिहास तेरी शक्ति पहचानता 
आज वर्तमान को तू एक इम्तिहान दे 
शान से अभिमान से 
फिर एक बार तू 
लड़ जा जहाँ से 
ट्वेंटी ट्वेंटी के घमासान को
विजय का मशाल दे 
सोच को संवार दे 
मुश्किलों को टालकर 

सत्या "नादाँ"

Saturday 15 March 2014

"होली" 272 ...... "दो साथ दो"

"होली" 272 ...... "दो साथ दो" 

राहुल बाबा कुर्ता बदलो
खांसी बार बार केजरी को आती है
मोदी मुद्दा चाय पे चर्चा
जनता बेचारी मधुमेह की मारी है
अम्मा छोड़ी लेफ्ट की लीला
अण्णा बोले ममता बड़ी प्यारी है
५६ की छाती ले डटे मुलायम
कि साइकल ही सत्ता की असल सवारी है
लालू चारा खा गए सारा
लालटेन बिन तेल के हारा
भगदड़ ने मचाई भारी तबाही
हाथ का साथ अब नहीं है भाता
करुणा राम को विलास लुभाता
हाथी की माया खोने लगी है
तेलंगाना पर टक्कर होने लगी है
रोज़ बवाल रोज़ सवाल
IPL  भागा देख सियासी त्यौहार
ना मन मोहन बोले
ना मेडम डोले
अमर जया हैंडपम्प को दौड़े
गुरूजी गुपचुप ये कैसी मुक्ति
नवीन ना चाहें किसी की झप्पी
पागल उद्धव देख राज की मस्ती
मेहबूबा को बर्फ में गर्मी सताए
पिता पुत्र की कॉन्फ्रेस तनिक ना भाए
सुशासन बाबू सिंघासन निहारे
अनुभव के तीर से PM केंडिडेट पछाड़े
प्रकाश अधूरा नाटक पूरा
तीसरा मोर्चा सपनो का बबूला
चुनावी हल्ला हर तरफ है भारी
रैली रैला चौपाल तैयारी
रैली रैला चौपाल तैयारी  !!!

सत्या "नादाँ"



Saturday 8 March 2014

कहाँ अधिकार है मेरा ???

मेरा अधिकार कहाँ है
बचपन से जीवन तक
हर बार समझौते की रस्म बनती हूँ
कभी खुशियों को खोकर
कभी अपनों में पराया होकर
हक़ मिलता नहीं
हक़दार बदल जाते
पंखों को खोलते ही
चिड़िया के संसार बदल जाते
बस वो फ़िज़ा जस की तस बनी रहती है
जहाँ होता इतना कुछ
कि इन आँखों की नमी नहीं मरती
वो शोर करते हैं
बहुत ही ज़ोर करते हैं
नाम देते हैं दुर्गा
और मेरे शक्ति को कमज़ोर करते हैं
सियासत आदत सी है उनकी
हवस सरे आम सड़क पर लोग करते हैं
बस यही मान है मेरा
यही सम्मान है मेरा
मैं दबी हूँ..... मैं झुकी हूँ
कहाँ अधिकार है मेरा
कहाँ अधिकार है मेरा
कहाँ अधिकार है मेरा ???

सत्या "नादाँ"

Wednesday 5 March 2014

बज गई है बाँसुरी.... लोकतंत्र के संग्राम की !!!



बज गई है बाँसुरी
लोकतंत्र के संग्राम की
ज़ोर है शोर है
प्रश्न घन घोर है
सियासत की साख पर खड़ा
भविष्य का भूगोल है
दिशा दिशा गूंजती
मत लत नहीं अधिकार के बोल हैं
मलंग में तरंग में
गीत में गगन में
गाँव गाँव गंभीर है
शहर शहर चिन्ह है
भारती भव्यता तलाशती
नीति के सियासी त्यौहार से
अस्त्र है.... शस्त्र है
ये विचारों का कुरुक्षेत्र है
विशाल भी विराट भी
विश्व विख्यात यह
स्वतंत्रता का श्रृंगार है
बज गई है बाँसुरी
लोकतंत्र के संग्राम की
बज गई है बाँसुरी
लोकतंत्र के संग्राम की !!!

सत्या "नादाँ"