Saturday 10 November 2018

घर में "चंडी" नगर में "चंडाल"

घर में "चंडी"  नगर में "चंडाल" 


क्या तुम जानती हो??? उस दोहरी मानसिकता... दोहरे चरित्र... दोहरी बातों को... जिसमे तुम्हे एक ओर देवी मानकर पूजने का ऐसा भयंकर ढोंग चलता है कि चैत्र नवरात्र एंव शारदीय नवरात्र के नौ दिन और नौ रात तुम रोज़ाना...  ब्रह्माणी रुद्राणी और कमलारानी कहलाती हो... वहीँ दूसरी तरफ़ बचे हुए ३४७ दिन शिला.. लैला.. चिकनी चमेली.. का वह शोर जो कान के पर्दे को कम समाज की सोच को ज़्यादा फाड़ता है...  वैसे भी हम अवसरवादी पुरुष युग-युगान्तर से अपनी ज़रूरतों के हिसाब से तुम्हारा नामकरण करते आएं हैं... जहाँ एक ही परिवार में संतान के रूप में तुम्हारा पहला जन्म तो "लक्ष्मी" हो जाता है किन्तु तीसरा-चौथा एक अभिशाप जिसे स्त्री के पिछले कर्मों से जोड़ दिया जाता है... कोख़ में क़त्ल कर मुल्क़ में लिंग अनुपात पर चिंता ज़ाहिर करनेवाला तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग फिर नारी सशक्तिकरण का तकिया कलाम लेकर आ जाता है... "बेटी बचाओं.. बेटी पढ़ाओ" समझ नहीं आता भाई... किसकी बेटी बचायें और किसकी बेटी पढ़ाएं ? स्वयं की या सामनेवाले की ????? अरुणा शानबाग..जेसिकालाल .. मधुमिता शुक्ला .. अंजना मिश्रा... प्रियदर्शिनी मट्टू.. कठुआ.. निर्भया.. शक्ति मिल.. जैसे बलात्कार एंव ह्त्या के कांड समूचे देश में ना जाने कितने हुए??? जिसमे परिवार ने अपने बच्चियों को सीने से लगा उन्हें पाल- पोसकर बचाया भी और पढ़ाया भी... लेकिन अंजाम जगज़ाहिर है !!! जिसे जैसी छूट मिली वह वैसा ही दबोचता गया... किसी ने ज़बान से... तो किसी ने जिस्म से सरेआम तुम्हारी आबरू को तार-तार कर अपनी हसरतों की भूख मिटाई... और हक़ीक़त भी यही है कि..... 'सरकार' और 'समाज' का दो मुंही बातों वाला आचरण जब तक समाप्त नहीं होगा... "तुम्हारा" हश्र ज्यों का त्यों ही रहने वाला है.. चाहे "विकास" कितना भी बड़ा क्यों ना हो जाए !!!!!


सत्या "नादाँ"