अब शहर ही शरीफ ना रहा
आप है की हममे शराफत ढूंढ़ते है !
ख़ुशी की तलाश में दर-बदर भटका
वो थी की घर में मेरा इंतज़ार कर रही थी !
उन्हें मेरे आंसुओं का मोल नहीं
आँख है की हमेशा नम रहती है !
इसकी ख़ातिर वो कुर्बान हो गए
वही आज़ाद होकर मुर्दा है !
चाहत के नशे में चूर क्या
कि 'शराब' को 'शबाब' कह दिया !
सत्येन्द्र "सत्या"
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