Wednesday 21 March 2012

मेरे ग़ज़ल का रूप बदल गया

मेरे ग़ज़ल का रूप बदल गया 

अब  शहर  ही  शरीफ  ना  रहा
आप है की हममे शराफत ढूंढ़ते है !


ख़ुशी  की  तलाश  में  दर-बदर  भटका
वो थी की घर में मेरा इंतज़ार कर रही थी !

उन्हें मेरे आंसुओं का मोल नहीं
आँख है की हमेशा नम रहती है !


इसकी ख़ातिर वो कुर्बान हो गए
वही आज़ाद होकर मुर्दा है !

चाहत के नशे में चूर क्या
कि 'शराब' को 'शबाब' कह दिया !


सत्येन्द्र "सत्या"



No comments:

Post a Comment