Wednesday 14 August 2013

रंग देख रो रही है "माता"

रंग देख रो रही है "माता" 

धर्म है या ढाल है
ये कैसी  सियासी चाल है
भूख में ज़हर
सड़क हवस का जाल है
"सच्चर" सच्चाई है  "८४" आँख ना भुलाई है
आदमी अधमरा हालातों से
मंहगाई घर घर में मातम सी छाई है
लूट ही लूट हर शहर में
गाँव की गाथा
नक्सली नहरों में समाई है
सिर्फ़ मज़हब ही मज़हब छलकते
सियासी पैमानों में
वोट नफ़रत की सस्ती कमाई है

मुद्रा बेहोश पड़ी घोटालों के बोझ से
विकास की बानगी "कोल-गेट" की गवाही है
ज़मीन से आसमान तक होने लगी हैं चोरियाँ
जेल में राजा
लोकतंत्र में युवराज
शब्द भी बेशर्म हो नशे में नहाई है

जुर्म जुर्म नहीं
सज़ा सारी माफ़ है
रेल - खेल सब घूस है
RTI बना दी दास है
और किसको फ़र्क पड़ता यहाँ
कि "५" मरे या ५०"
शहादत तो सिर्फ शोर है
आज चीखें कल शांत

रंग देख रो रही है "माता"
कि लोभ बनी पहचान
कल तक इज़्ज़त मिटटी थी मेरी
अब बन गई जेसिका,गीतिका,निर्भया का नाम

गली गली में खौफ़ बसा
कि हत्यारा बन रहा हाथ
ना मोहब्बत है ना शांति
बस नाम भर रह गया
सेकुलर हिन्दुस्तान !!!


सत्या "नादाँ"





Sunday 11 August 2013

"नज़्म " वो पल....

"नज़्म "  वो पल


आँखों को सब याद है नफ़रत के सिवा
ज़िंदगी बिन पढ़ी किताब है मोहब्बत के सिवा
लम्हा-लम्हा वक़्त गुज़र ही जाएगा
मेरी बेचैनी तुम्हारी ख़ामोशी के साथ
कभी आंसू कभी दर्द
दोनों बह ही जाएँगे
रह-रह कर मरती
तमन्नाओं के साथ
और मेरी तलाश का
हर सफ़र अधुरा है
तुम्हे भूल जाने के बाद

उम्मीद थी कि वक़्त बदलेगा कभी
पर किस्मत भी साथ बदल जाएगी
इसका अंदाज़ा ना था
कभी शाम साहिल पर साथ बितती
अब डगर - डगर डर का बसेरा है
धूप दूर से दूर तक खिली है
पर इस ज़िंदगी में अब भी
उस जुदाई का घना अँधेरा है

प्यार की वो परछाईयाँ
जो ढाली थी इन दीवारों पर
चुभ-चुभ कर पूछती हैं आँखों से
कहाँ ग़ुमनाम हो गया
जो मेरे आँचल का साया है


सत्या "नादाँ"