Friday 16 December 2011

"भारत का आकाश लाएगा बदलाव की बरखा !!!

                                                        चमकता आकाश.... 





भारत प्रगति की ओर बढ़ रहा है इस बात को नकारा नहीं जा सकता…  लेकिन विकासशीलता के इस चक्र से जल्द ही बाहर निकलकर हमें विकसित भारत बन दुनियां के नक़्शे पर छाना है.… जो कि बिना तकनीकी विकास के संभव नहीं… और उसकी ही एक झलक हमें आकाश टेबलेट में दिखती है.… मार्केट में आने से पहले हुई बुकिंग ने मुल्क़ में ऐसा धमाका किया है कि, लगा हर तरफ बदलाव की लहर आने को बेकरार है… और जिसे पूरा युवा वर्ग भुनाने को उत्सुक है.…


बदलाव शब्द का प्रयोग करने पर शायद बहुत लोगो को आश्चर्य होगा की मै ऐसा क्यूँ कह रहा हूँ? क्या सही मायने में कुछ बदलेगा? जी हाँ यकीन मानिये अगर आकाश हर जगह आसानी से उपलब्ध हो गया तो इसके ख़रीदार  बहुत है, और सबसे बड़ी बात कि इसकी कीमत कम है.…पहले लोग पेज़र का इस्तेमाल किया करते थे, पर मोबाईल से जो क्रांति आई उसे भुला नहीं सकते, उसी प्रकार "ग्लोबल लाइजेशन" के इस दौर में पूरी दुनियां "ग्लोबल विल्लेज" के रूप में तब्दील हो गयी है.…  जिसके तार इन्टरनेट से जुड़े है पर उस तार को पकड़ने का साधन है कम्प्यूटर तो जरा सोचिये यह आकाश सिर्फ छात्रों को नहीं बल्कि पुरे भारत के लिए कितना उपयोगी होगा, क्या आप सोच रहे हैं कि इसका उपयोग कैसे किया जाएगा ? तो ज़रा सोचिए आपको मोबाईल चलाना किसने सिखाया था????


अब तो विदेशों से भी इसकी मांगे आने लगी है और आना लाज़मी भी है सस्ती और अच्छी चीज़ किसे पसंद नहीं आती,और जब समय मंदी का हो बात ही क्या? सरकार ने कुछ तो जनहित में लाया जिसका फ़ायदा हम सब उठा सके तो इंतज़ार किस बात का अभी से बुकिंग करा लीजिए शायद आप क़तार में औरों से आगे हो जाएं…


जब घर - घर में गूगल आएगा
अमेरिका भारत में नज़र आएगा
बिन गए दूकान शॉपिंग हो जाएगा 
पप्पू - पप्पी को चैट से मनाएगा  
जब घर - घर में गूगल आएगा 
जब घर - घर में गूगल आएगा 

                                                                                                                सत्या "नादाँ"

लोकपाल से इतनी दहशत क्यूँ ???????????????

                              "अन्ना मुखौटा नहीं जनता की बुलंद आवाज़ है "




2 जी घोटाला, CWG घोटाला, आदर्श घोटाला, मधु कोड़ा का घोटाला देश में घोटालों की ऐसी फेहरिश्त है जो की  ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती, और सरकार भी इनपर अंकुश लगाने में असमर्थ नज़र आने लगे तो सवाल उठता है आम आदमी क्या करें ? जो खाने की चिजों से लेकर पेट्रोल की बढ़ती कीमतों से त्राह-त्राह कर रहा हो, भ्रष्टाचार के आंतक से खुद को ठगा महसूस करता हो!  इतने परेशनियो के बाद उसे उम्मीद की एक किरण लोकपाल के रूप में नज़र आती है वो चाहता है की लोकपाल पर बहस हो और उसे अम्लीय जामा पहनाते हुए सदन के दोनों सत्रों में पास किया जाए!


 लोकपाल की जागरूकता अन्ना और उनकी टीम ने पुरे देशभर में फैलाई और बताया की कैसे यह कदम भ्रष्टाचार को दूर रखने में सहायक होगा, और इसे लाने के लिए ११ दिन का अनशन किया इस मुहीम को ऐसा जनसमर्थन मिला की सड़क से संसद तक भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का आक्रोश देखने को मिला मै भी इससे अछूता ना था, करता भी क्या पापा ने पॉकेट मनी जो कम कर दी!बस शुरू हो गया "मी अन्ना हजारे आहे"के नारों के साथ ,इस मसले पर अन्ना की टीम ने हर राजनितिक पार्टियों से भी बातचीत की, सरकार को मानसून सत्र से लेकर शीतकालीन सत्र तक का मौका दिया किन्तु अब तक इसका हल नहीं निकला!और अब आलम यह है की अन्ना और उनकी टीम को ही निशाना बनाया जा रहा है, की अन्ना अपनी मनमानी कर रहे है! पर सोचनेवाली बात है की जिसने इस मुहीम की शुरुवात की क्या वह इसका सूत्रधार नहीं बन सकता बार बार समय की दुहाई दी जाती है पहले इसे लटका कर रखा गया  उसके बाद स्थायी समिति के पास भेजा गया अब स्थायी समिति संसद पर निर्णय छोड़ रही है! समझ नहीं आता की कौन क्या कर रहा?? कौन क्या चाह रहा?? क्या वाकई सरकार इससे डर गई है अगर हाँ तो क्यूँ ?????? और नहीं तो इतनी देरी क्यूँ कर रही है! अब तो हालत ये है की सरकार के नियत पर ही सवाल उठने लगे है!

लोकपाल के अंतर्गत प्रधानमंत्री,सीबीआई,(क श्रेणी) के नौकरशाहों को लेकर विवाद जस के तस बने है! किन्तु सोचनेवाली बात यह की क्या ये मांगे उचित नहीं है? या प्रधानमंत्री को खुद पर भरोसा नहीं, पर 2 जी घोटाले और cvc appointment में प्रधानमंत्री की भूमिका भी घेरे में आयी थी!तो ऐसे में सवाल उठाना वाजिब है की प्रधानमंत्री को भी इसमें क्यूँ न शामिल किया जाये,रही बात सीबीआई की तो हम सब जानते है इस देश में सीबीआई की दशा क्या है,कैसे सरकारें कठपुतली की तरह इन्हें नाचती हैं जिसने आरुशी के हत्या की ऐसी जाँच की,कि वह murder mystery आज तक न सुलझ पाई और भंवरी का हाल तो हम देख ही रहे हैं और पिछले दिनों मध्य प्रदेश के एक नौकरशाह की करतूत तो टीवी पर ही उजागर हो गई कि कैसे एक द्वारपाल करोड़ों की कमाई कर रहा है! तो अब बताइए की क्या इन सब मांगों पर अन्ना का अडिग रहना ज़िद्दीपन को दर्शाता है या फिर एक मजबूत लोकपाल के लिए संघर्ष करते उन विचारों जो को जो एक नवीन भारत का सपना देख रहा है जिस पर करोड़ो लोगो कि उम्मीदें टिकी है..........


भ्रष्टाचार से लड़ने की लौं जलाई हमने!
इन्होंने कहा हम लोगों को भरमा रहे है!
अरे तुमने रोका है भारत की प्रगति को !
हम तो इसे नवीन भारत की ओर ले जा रहे है....................
                            
                                                                                                       सत्येन्द्र "सत्या"
                                                             




Tuesday 13 December 2011

WHY DEATH PENALITY HAS BECOME POLITICAL ISSUE IN INDIA ???????????


संसद पर हमले की बरसी पर फ़िर जो मामला तूल पकड़ रहा है वह है अफज़ल की फाँसी का,आखिर क्यों उसकी माफ़ी याचिका पर सुनवाही में देरी हो रही है ! क्या इसे राजनितिक जामा पहनाया जा रहा है! इन सब पर चर्चा करने से पहले हमें उन पहलुओं को समझना होगा,जो इस फैसले के बिच रोड़े उत्पन्न कर रहे है...........


# क्या है rarest of the rare ?



१९८० में सर्वोच्च न्यायालय ने "बच्चन सिंह" के  मामले कि सुनवाही करते हुए फ़ैसला सुनाया था, कि देश में अब फाँसी rarest of the rare case में ही होगी! पर इसकी परिभाषा समय के साथ बदलती गई, १९८३ में capital crime, honor किल्लिंग, तो १९८९ में इसका दायरा बड़ा कर large scale narcotic traffing को भी शामिल किया गया उसके बाद आतंकी गतिविधियों के लिए भी इस सज़ा को बहाल किया गया, किन्तु इन सबके बावजूद भी rarest of the rare को प्रमाणित कर पाना मुश्किल है! क्यूंकि यह हमेशा ही perception है की जज किस नज़रिए से निर्णय लेता है! आरोपी द्वारा किये गए कृत को घिनोना मानता है कि नहीं सिर्फ तथ्यों पर ही rarest of the rare साबित नहीं होता है इनकी रूप रेखा भी आवश्यक होती है! 

# क्या है राष्ट्रपति के सवैधानिक अधिकार सज़ा ए मौत के प्रति ? 

सर्वोच न्यायालय द्वारा दी गई सज़ा पर पुन्रविचार का हक़ सिर्फ राष्ट्रपति के पास होता है  
राष्ट्रपति अगर चाहे तो अपराधी कि सज़ा ए मौत रोककर उसे उम्र कैद में तब्दील कर सकता है अथवा उसे अमान्य कर सकता है देश में पिछली फाँसी aug 2004 में हुई थी, जब धनंजय चटर्जी कि माफ़ी याचिका को खारिच करते हुए पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने फाँसी कि सज़ा को बरकरार रखा उसके बाद से आज तक देश में किसी को फाँसी कि सज़ा नहीं हुई वर्तमान समय में  राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राजीव गाँधी के हत्यारों, देवेन्दर सिंह भुल्लर और महेंद्र नाथ दास कि, माफ़ी याचिका ख़ारिज  कर दी, पर जेल कि रस्सियाँ आज भी उनका इंतजार कर रही है, कुछ यही कमावेश अफज़ल गुरु का भी है जिनकी माफ़ी याचिका राष्ट्रपति से लेकर नौकरशाहों(गृह सचिव) तक विचार विमर्श के लिए गोल गोल घूम रही है, बस यही से शुरुवात हो जाती हैं राजनितिक कवाय्तों कि !

# क्यूँ सज़ाए फाँसी बन जाती है राजनितिक फाँस ?

          ग़ालिब ने कहा था ,  "एक ही उल्लू काफ़ी था, बर्बादें गुलिस्तां करने को,
                                 वो हाले गुलिस्तां क्या होगा,जब हर डाल पर  उल्लू बैठेगा" 

जी हाँ इस देश में राजनीती तब नहीं होती जब यह मामले कोर्ट में होते है किन्तु जैसे ही राष्ट्रपति के पास पहुचतें है वाद विवाद का केंद्र बिंदु बन जाते है ,वर्त्तमान समय में देखें तो फाँसी के कई मामले राष्ट्रपति के पास पड़े हैं जिनपर फ़ैसला आना बाकि है, फ़ैसलों में होती देरी से जहाँ परिवार सांत्वना जुटाने की कोशिश करता है, वही राज्य में अराजकता सा माहोल छाने लगता है तो ये कहना गलत नहीं की राष्ट्रपति द्वारा की गयी देरी राजनितिक आग में घी का कम करती है, जिसका उदाहरण है जम्मू- कश्मीर,पंजाब और तमिलनाडु.

# राजनितिक अवसर-वादिता और उसका प्रभाव !

देश की राजनितिक पूरी तरह से उस प्रणाली पर निर्भर है जो की FPTP electoral system के तहत चलती है जहाँ फ़ैसला majority नहीं numbers करते है इसे समझाना इसलिए आवश्यक है क्यूंकि यही प्रणाली जन्म देती राजनितिक अवसर-वादिता को शायद इसी डर से जयललिता ने तमिलनाडु विधानसभा में राजीव गाँधी के हत्यारों के बचाव में resolution पारित किया और उसकी तैयारी में प्रकाश सिंह बादल पंजाब में और PDP जम्मू कश्मीर में है इन परिश्थितियों में राष्ट्रनीति कम राजनीती ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाती है लोगो के sentiment राजनितिक मुद्दों की जगह ले लेते है, बस यही राजनितिक अवसरवादिता और vote की मज़बूरी!



 # क्या उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को चुनोती दे सकता है ?

मामला बड़ा संजीदा है और सवाल उठते है क्या ऐसा भी हो सकता है तो उत्तर होगा नहीं, madras high court ने supreme court  के फैसले को चुनोती नही दि,बल्कि उसने अधनियम २२६ के तहत मिले अधिकार को तव्वजो देते हुए एक प्रस्न को जन्म दिया कि क्या एक अपराधी एक अपराध के लिए दो सज़ाओं का हक रखता है?और इसी कारण madras high court  ने  राजीव के हत्यारों कि सज़ा पर रोक लगा दी!

कहतें है स्त्री कि सुन्दरता उसके चरित्र को बयाँ नहीं करती उसी प्रकार भारत दुनियाँ का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है१ पर आज यह प्रणाली विवादों के घेरे में है! पर क्या इसे सुचारू रूप से चलाया जा सकता है, तो जवाब होगा हाँ....................

सुझाव जो दूर रख सकते है फाँसी कि सज़ा को राजनिति फाँस बनने से !

१) राष्ट्रपति अपनी नैतिक ज़िम्मेदारियां समझे !
२) अधनियम ७२ में संशोधन अवश्य हों !
३) राजनितिज्ञय राष्ट्रनिति को राजनिति से न जोड़े !



Monday 12 December 2011

मै सौ बरस की !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


मै सौ बरस की !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

मै इठलाती चली फुर्राती चली!
हँसती चली हँसाती चली !
अपनी जवानी पर इतराती चली!
मुझसे लोग दिल लगाते गए !
मै उन्हें बसाती गयी, बसाती गयी !
घोड़े के रथ से मेट्रो और बस तक !
मेरे अपने निखारते गए मै निखरती गयी!
अब black - white से रंगीन हो गई हूँ !
भारत के विकाश की मशीन हो गई हूँ !

आज शुक्रगुज़ार हूँ उनका (दिल्ली वाशियों का )!
जिन्नोहने ने अपनी मेहनत से मुझे सींचा !
दुःख में रोने को कन्धा दिया, सुख में संग हँसे !
उनकी दया से मेरे विरासत को आज सदी हो गए !


उनकी दया से मेरे विरासत को आज सदी हो गए.................................................................


                                                                                                                      सत्येन्द्र "सत्या"

Sunday 11 December 2011

ये है मुंबई मेरी ज़ान !!!!!!!!!!!!!!




आमची मुंबई ..............................................................

दुनिया में भारत की पहचान है मुंबई!
सितारों से भरा गुलिस्तान है मुंबई !
हादसों को बहुत झेला है इसने !
पर गिरकर दौड़ाने के हौसले का नाम है मुंबई !
मुंबा जिसकी माता हो !
रोना जिसे न आता हो !
सोना जिसे न आता हो !
आराम जहाँ हाराम है !
प्यार जिसका फरमान है
आम से खास तक काम सबका ईमान है !
मोहब्बत जिसकी इंसानियत है !
सदभावना जिसकी हकीकत है !

बोले तो मामू यही है अपनी रापचिक मुंबई !
                                         टापचीक मुंबई !
                                          आमची मुंबई !.....................................

क्यूँ आग में "आमरी" ???




क्यूँ आग में "आमरी" ???

अर्धजले शरीर को बचाने के लिए उसके परिजन उसे अस्पताल में भर्ती करते हैं कि शायद वह बच जाए पर समय की विडम्बना देखिए कि जिस आग के घाव पर मरहम लगवाने के लिए वह अस्पताल गई उसी अस्पताल के लापरवाही ने उसे ज़िंदा जला डाला…  ख़बर की प्रस्तावना से आपको घटना का अंदाज़ा तो हो ही गया होगा !!!

गुरुवार रात को कोलकत्ता के आमरी अस्पताल (AMRI HOSPITAL)  में लगी आग ने अपनी लपटों से तबाही का ऐसा मंज़र ढाया कि,यह आग एक ऐसे अग्निकांड में तब्दील हो गई,जहाँ लाशों का ताँता लगाने लगा और देखते ही देखते इस आग में  ९२ जानों की आहुती चढ़ गई इस
अग्निकांड ने अपने साथ कई प्रश्नों को भी जन्म दिया,मसलन कि,
                                       
१) समूचे देश के चिक्कित्तसालय अपनी आतंरिक सुरक्षा के लिए कितने सक्षम है? 
२) हमारे अग्निशामक केंद्र की स्थिति क्या है?
३) नगरपालिका अक्सर आग लगने के बाद ही क्यूँ होश में आती है?
४)क्या इन घटनाओ के गुनहगारों को कड़ी सज़ा मिलेगी कि फ़िर कभी ऐसा हादसा न हो ?

ये कुछ ऐसे सवाल है जिनकी तह तक जाने की ज़िम्मेदारी हम सबकी है, क्यूंकि ऐसा नहीं की यह हादसे पहली बार हुए हो, इससे पहले भी कोलकत्ता में भयंकर आग लग चुकी है, और कुछ दिनों पहले मुंबई में क्या हुआ हम सब ने देखा, इस अग्निकांड के बाद कोलकता महानगर पालिका ने अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने का फैसला किया, प्रबंधंको को इस मामले में आरोपी भी बनाया लिया गया,पर इन सबके बिच जो सवाल अभी ज्यों का त्यों है वह यह है कि, उनको परिवारों को क्या जिन्होंने दूसरों की गलती के कारण अपना सब कुछ खो दिया ???



आग की लपटों ने ऐसा जलाया मुझे 
कि कल तक दूसरों को बचानेवाली ने 
आज ख़ुद अपनी बर्बादी का तमाशा देखा 
उनके अश्रु तार तार बहने लगे मुझ पर
जबसे सबने मुझ मुर्दाघर का नज़ारा देखा...........................................................
     
                                                                                                       सत्येन्द्र "सत्या"


Friday 9 December 2011

"संग ना बदला mi के रंग बदल गए" "शायद जिन्हें मै भुला ना सकू "


"संग ना बदला mi  के रंग बदल गए"

बदलने को हमारी क्लास बदल गई !
पर हमारी दोस्ती कि मिठास ना बदली !
ज्ञान और अभ्यास के पटल बदल गए !
पर मेंटर कि दृढ़ता और पत्रकारिता कि राह ना बदली !
और सफ़र ओखला से ग्रेटर कैलाश पहुँच ही गया !
पर मंजिल तक पहुचने  कि प्यास ना बुझी !

"शायद जिन्हें मै भुला ना सकू "

ढाबे के वो पराठे याद आएंगे !
ओखला कि बातें याद आयेंगी !
वो हस - हस कर चिल्लाना !
कुछ कहने से पहले ना जाने क्यूँ घबराना !
मेंटर कि चीख से फूटबाल कि किक तक !
अपनों कि यारी से mi campus कि वारी तक !

अब वो सब अनछुए किस्से बन जायेंगे !
जिन्हें चाहकर भी हम भुला ना पाएँगे !
जानता हूं, जिन्दंगी का सफ़र हर मोड़ से होकर जाता है !
पर इस मोड़ के मुसाफिर इतने हसीन होंगे इसका अंदाज़ा ना था !
इसका अंदाज़ा ना था.......................................................

तो जुदा मै भी न होता, जुदा तुम भी न होती.....................................


तो जुदा मै भी न होता, जुदा तुम भी न होती !

इज़ाज़त थी तुम्हारी तब मैंने इज़हार किया !
जन्नत नसीब हो मुझे इस जहाँ में !
कि मैंने तुमसे बेपनाह प्यार किया !
किन्तु जरुरत क्या थी वहां पर जाने कि !
कुछ तो वक़्त का लिहाज़ किया होता !
बेबस न होकर साहस का एहसास किया होता !
तो गम यंहा भी न होता गम वहां भी न होता !

और उल्ल्फत में रहकर शरीफ हो जाऊ मै !
                                          ऐसी फितरत नहीं हमारी !
                                         मोहब्बत करना आता है, पर मोहब्बत को आंजमा!
                                         सकु ऐसी हसरत नहीं हमारी कास तुम इस रिश्ते को !
                                         महफूज़ करने कि कोशिश कि होती !
                                        प्यार के राह पर महत्तवकांक्षा कि दुरी को दूर कि होती !
                                       तो कसक यंहां भी न होता कसक वहां भी न होता !

                                      हमारे बीच कोई जोर आजमाईश भी न होती !
                                      आज तुम मेरी होती पराई ना कहलाती !
                                      सज़ सजा कर लाता मै, डोली तेरे आँगन में !
                                      पलकों में बिछाकर ले जाता मै अपनी बाँहों में !
                                      तो जुदा मै भी ना होता जुदा तू भी ना होती !

                                      तो जुदा मै भी ना होता जुदा तू भी ना होती.......................................

Wednesday 7 December 2011

इंतजार है एक दिन तो तू चली आएगी.........................


इंतजार है एक दिन तो तू चली आएगी.........................

मन के पागल किरणों की ज्योति कहीं खो सी गयी है !
नैनो की सुंदरता भी ओझल हो सी गयी है !
और जीकर भी बेचैन है दिल मेरा तेरी बातों में !
विरह व्यथा के गीत गा रहा हूँ बस तेरी यादों में !

इंतजार है एक दिन तो तू चली आएगी !
मेरे चंचल शब्दों पर अपने कलम से मोहर लगाएगी !
मेरे इन प्यासी आँखों को अपना दर्पण दिखलाएगी !
जीवन के अंधियारे पथ पर प्रेम के दीप जलाएगी !
इंतजार है एक दिन तो तू चली आएगी !

जब रह रहकर सन्नाटे में शोर सुनाई देता है !
तितलियों के आगे फूलों का रस कम होने लगता है !
जब कोयल कुक लगाती है !
सूरज की लाली छाती है !
जब दिल की बात दिल में !
न रहकर ओठों पे आ जाती है !
तब हर जगह तस्वीर तुम्हारी दिखती है !

जी रहा सत्येन्द्र "सत्या" बस अब तेरे ही इंतजार में
की एक दिन तो तू चली आएगी !
की एक दिन तो तू चली आएगी.................................................