Saturday 17 March 2012

"यूँ रूठा न करो मुझे मनाना नहीं आता"

"यूँ रूठा न करो मुझे मनाना नहीं आता"

नाराज़गी ने तेरी मुस्कुराने न दिया
दिल ने मय को हाथ लगाने न दिया 
कसूर किसका पता नहीं,
कसक ऐसी थी कि,
गिला शिकवा भुलाने न दिया...

मै जानता हूँ..
मोहब्बत का दिदार मुझमे है 
मेरे मन की पुकार तुझमे है 
पर तू भी इससे ज़ुदा कहाँ 
स्वयं दिल भी तेरा,
तेरे वश में रहता नहीं
बैचनियाँ बहुत हैं इसे 
बस कुछ कहता नहीं
रूठा रहता है मनाने की फ़िराक में
न जाने क्यूँ भूल जाता है
कि कोई और भी रूठा है
उसके मनाने की आश में.......




किन्तु प्यार की आग
जो ज़ली थी दिल में उसने
गमे तूफ़ान में बहकर भी
हमे अलग होने न दिया
मुसीबत के घूंट तो पिए बहुत दोनों ने
पर प्यार का असर इतना था कि,
हमने एक दुसरे को रोने न दिया.....
हमने एक दुसरे को रोने न दिया......


सत्येन्द्र "सत्या"




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