Tuesday 19 September 2017

उफ़ !!!! ये बरसात...

खड़ी गाड़ी
पड़ी गाड़ी
गाड़ी पर चढ़ी गाड़ी
सब हैरान से चेहरे
तनाव ग़हरे के ग़हरे
सच.... सोच को रुला रही है
क़शमक़श ज़िन्दगी
इंतज़ार इंतज़ार में
सर्द सहमी सिमटी जा रही है
वो मुझे देखे
मै उसे देखूं
नज़र नज़र से
कुछ बता...
कुछ छिपा रही है 
घूर घूर घड़ी देखते सारे
मोबाइल जेब की...
रुक रुक बजती जा रही है
सब्र अब बेसब्र होने लगा
भीगी ज़मीन भीगा जिस्म
आज
भीगी भीगी सारी उम्मीदें हैं
शहर समझ ही नहीं पा रहा
भीड़ भय में...
तितिर.... बितिर
पसरती जा रही है
उफ़ !!!! ये बरसात...
उफ़ !!!! ये बरसात...

सत्या "नादाँ"