Sunday 4 March 2012

किसके सर सजेगा सत्ता का 'सरताज़' ???

किसके सर सजेगा सत्ता का 'सरताज़' ???


उत्तर प्रदेश में कल अंतिम चरण का मतदान ख़त्म होने के साथ ही सियासी गलियारों से लेकर न्यूज़ चैनलों और अख़बारों तक शुरू हो गया कयासों का दौर इस बार की हुई धुआंधार वोटिंग ने राजनीतिज्ञ पार्टियों के साथ-साथ चुनावी पंडितो (विशेषज्ञ ) को भी भ्रम में डाल रखा है....किसी के लिए भी यह कह पाना की इस बार सत्ता की चाभी किसके हाथ लगेगी दुविधाजनक हो जाता है किन्तु एक बात जो सबने समान्यत: कही,वह है माया की विदाई  अर्थात चुनाओं के दौरान ढकी 'हाथी की माया' का जादू इस बार देख पाना मुश्किल है......


किन्तु इन्ही अटकलों के कारण मेरे ज़हन में कुछ प्रश्न उठने लगे, मसलन.......


१> क्या पिछले चुनाओं में दिखा ब्रहामण-दलित का 'करिश्माई' समीकरण अब समाप्त हो गया?
२> क्या ५००० करोड़ के राष्ट्रिय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना (NRHM) के घोटाले का 'जिन्ह' माया पर भारी
     पड़ेगा?
३> कहीं कांग्रेस की मजबूती यू.पी.को त्रिशंकु विधान सभा की ओर तो नहीं ले जाएगी?
४> क्या अखिलेश 'सामाजवादी झंडा' का नया चेहरा बन प्रदेश में अपनी छाप छोड़ेंगे?
५> क्या उमा यू.पी.में सत्ता के लिहाज से महत्तवपूर्ण 'दलित समाज' में कमल खिला पाएंगी?
६> और इन सब के बिच मुस्लिम समाज कहाँ खड़ा है.. कहीं वह आपस में बटा तो नहीं?


४०३ विधान-सभा सीट वाला यह प्रदेश राजनितिक द्रृष्टि से अत्यंत महत्तवपूर्ण है यहाँ से ८० लोकसभा सांसद और ३१ राज्य सभा सांसद आते है जो की सीधे केंद्र की राजनिति को प्रभावित करते हैं,मतलब इस राज्य के राजनिति परिणाम २०१४ के लोकसभा चुनावों कि तस्वीर का फ़ैसला करने में निर्णायक साबित होंगे..२००७ के चुनाव नतीजो पर रौशनी डालें तो बसपा (२०६) सपा (९७) बीजेपी (५१) कांग्रेस (२२) रालोद (१०) अन्य (१६) सीटें मिली थी..आप कि जानकारी हेतु बता दूं कि उस समय भी किसी ने नहीं सोचा या अनुमान लगाया था कि बसपा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी...किन्तु इस चुनाव में जो मुख्य बात उभर के सामने आई वो थी जनता का मतदान के प्रति झुकाव जो किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए बेहद जरुरी होता है..इस चुनाव में राजनितिक विरासत कि दूसरी पीढ़ी ने अब अपने बल से पार्टी को आगे ले जाने कि बहुत कोशिशे भी कि चाहे वो राहुल,अखिलेश या जयंत चौधरी ही क्यूँ न हो अब तो समय ही बताएगा इस जिम्मेदारी में कौन कितना खरा उतरा .....




इस चुनाव के नतीजे गठजोड़ कि राजनिति के हिसाब से भी बेहद दिलचस्प होंगे कि कौन किसके साथ गठबधन करेगा इस चुनाव कि खासियत भी यही थी कि,अपने-अपने राज्य में साथ-साथ चुनाव लड़ने वाले TMC और INC ,BJP और JDU ने यहाँ पर अलग-अलग चुनाव लड़ा.........


तो बस मेरे संग इंतजार कीजिये ६ तारीख का जब "EVM बाबा"(वोटिंग मशीन) का पिटारा खुलेगा और शुरू हो जाएगी वोटों कि गिनती जहाँ शह और मात के खेल में देखना वाकई बड़ा दिचस्प होगा कि बाज़ी किसके हाथ लगती है चुनावी विशलेषण वास्तविकता के कितने निकट या उनसे परे है....और यू.पी को अक्सर जातीय राजनिति के चश्मे से देखने वाले नेताओं को जनता ने क्या जबाब दिया ??? मतदान में फर्स्ट क्लास नंबर पाने वाली यह जनता अब किसको फर्स्ट क्लास से पास करती है या फ़िर पार्टियों को प्रमोशन नंबर कि आवश्यकता पड़ेगी??????????





       सत्येन्द्र 'सत्या'

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