Monday 30 April 2012

मै मजदूर हूँ!!!

मै मजदूर हूँ!!!


बड़ी सिज्जत से सवांरा
मैंने इस जहाँ को
गाँव की सड़कों
शहरों के सौन्दर्य-शान को

मेरा श्रम आपकी फसलों में है
मेरा श्रम इन गगन छूती इमारतों में
मेरा श्रम मुल्क के विकास में है
मेरा श्रम उज्वल ज्योति के प्रकाश में
मेरा श्रम नहीं तो कुछ नहीं
जो मेरे श्रम से चलता प्रगति का चक्का

किन्तु इतना श्रमिक होकर भी
स्वयं विलासिता से दूर हूँ
इन्ही के हाथो से चलते
ये कल-कारखाने
इन्ही हाथों ने ही रखी पूंजीवादियों की नींव है
पर यहीं  हाथ आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं
मुझसे ही होता है आधुनिक भारत का निर्माण
पर ना बन सका इस समाज की पहचान
क्यूंकि मै मजदूर हूँ
क्यूंकि मै मजदूर हूँ

सत्येन्द्र "सत्या"

Sunday 29 April 2012

'मेरे "अल्फाज़" किसी के छिपे जज़्बात हैं'

'मेरे "अल्फाज़" किसी के छिपे जज़्बात हैं'  




मेरी 'चिट्ठी' ने 'शहर' में 'हंगामा' मचा रखा है 
अरे कोई उनसे भी तो पूछे 
जिन्होंने 'मुल्क' को ही
'मदारी' का 'तमाशा' बना रखा है....











'विश्वास' मर गया 'माया' के मेले में 
पर मै 'मुर्ख' न समझ पाया इसे
जो अब भी लगा पड़ा हूँ 
'दोस्ती' के 'खेलों' में .....













तुम 'हक़ीकत' से 
नज़र यूँ न चुराया करो 
'सपनो' में प्यार 
तो सभी को होता है.....













मेरी 'ख़ामोशी' का मतलब
पूछो इस 'मुल्क' से 
जहाँ 'इंसान' 
ज़िंदा होकर भी 'गुमशुदा' हो गया है...












इसे उसका बदला 'रंग' न समझना 
ये तो उसकी 'अदा' है
जिसपर 'इंसानों' का 
'वश' नहीं....






सत्येन्द्र "सत्या"

Saturday 28 April 2012

तुमने भी साथ छोड़ दिया!!!

तुमने भी साथ छोड़ दिया!!!

मेरी इन आँखों का 
तुम्हे ख्याल न रहा 
जो टूट गई 
एक हल्के झटके से 
तुम्हारे सहारे 
अपनी नज़रो से 
ये शहर देखता था 
बस्ती,गलियां,बगियाँ 
फूलों से सजा 
हर मंज़र देखता था 
सनम की लिखी चिट्ठी 
में स्नेह के शब्द देखता था...

अब तुम ही बताओ 
क्या करूँ
कैसे तुम बिन 
उन हसीन पलों को जीऊ 
तुम्हे बनाने वाले भी 
कुछ दिनों की दुहाई 
मांगते है 
कैसे कहू उनसे 
कि,मेरा तुमसे 
तुम्हारा-मुझसे 
रिश्ता क्या है......

जो हुआ सो हुआ 
पर फिर कभी यूँ ही 
'क्षतिग्रस्त' न होना 
माना तुम हो बड़ी नाज़ुक 
पर मेरी 'कवच' हो 
बड़ी लचीली पर 
मेरे सफ़र की 'मदद' हो
माना तुम हो बड़ी नाज़ुक
पर मेरी 'कवच' हो
बड़ी लचीली पर
मेरे सफ़र की 'मदद' हो.....

                                                                                                                   
सत्येन्द्र "सत्या"



Friday 27 April 2012

"राजनीति में ईमान बिक गया"


"राजनीति में ईमान बिक गया"

"राम" नाम का जाप है
किन्तु घर के "लक्ष्मण'
का दामन ही न साफ़ है
फिर भी दावा है
खिलाएंगे "कमल" क्यूंकि
भ्रष्टाचार में डूबा "हाथ" है
भ्रष्टाचार में डूबा "हाथ" है!!!!!

वाह-वाह क्या राजनीतिक  मिजाज़ है
मेरे भारत देश का
जहाँ सरकारों की निष्ठां ही नापाक है
आम-आदमी भूखा-नंगा हो रो रहा
पर कहने को यहाँ
लोकतंत्र का राज है
लोकतंत्र का राज है....

सत्येन्द्र "सत्या"

Sunday 22 April 2012

***मेघा कब बरसोगी ***


***मेघा कब बरसोगी *** 

तुम  हर आये दिन छाती हो
हवा-आंधी संग लाती हो
किन्तु अब भी इंतज़ार है मुझे
तुम्हारी उन  मोटी बूंदों का 
जिसमे अपनी पलके भीगा संकू
बेरंग  बनी जिन्दंगी
गर्मी के मौसम  में
उसमे तुम्हारे पानी का
रंग मिला सकू
पर तुम ऐसा होने नहीं देती
जो दस्तक  तो देती हो
बारिस  के आने का
और फिर लौट जाती हो
और फिर लौट जाती हो...

अरे मेघा अब तो बरस  जाओ
जो डर लगता है बदन को
उन तपाती किरणों से
गर्म धुप की जंजीरों से
क्यूँ इस तरह लुक्का-छिपी
का खेल खिलाती हो
क्यूँ इस तरह लुक्का-छिपी
का खेल खिलाती हो .....


मेघा अब तो बरस जाओ
मेघा अब तो बरस जाओ ......

सत्येन्द्र "सत्या"

Saturday 21 April 2012

"भारत की अग्नि "


"भारत की अग्नि "

मेरे गौरव की शान "अग्नि" है
मेरे शक्ति की पहचान "अग्नि" है
मेरे शांत आचरण को
कायरता का नक़ाब
समझाने वाले गीदड़ों(मुल्कों) को
इस शेर (भारत) का जवाब "अग्नि" है
इस शेर (भारत) का जवाब "अग्नि" है

सत्येन्द्र "सत्या"



बाबा शक्ति नहीं मदारी....

बाबा शक्ति नहीं मदारी....

भक्त निस्वार्थ हो
आस्था में खोया
बाबा स्वार्थी हो लोभ में
प्रवचन तो महज़ जरिया बना
धर्म की आड़ में लुट का
जहाँ तन-मन मैला हुआ सिर्फ
वस्त्र और नाम "निर्मल" रह गए.......

सत्येन्द्र "सत्या"


"नशा" कह अपने से दूर कर दिया.....


"नशा" कह अपने से दूर कर दिया..... 

कोई तुझे बदनाम करे
तो क्यूँ चुप रहू मै
जब मै तनहा था
तो तुने साथ दिया
शरीफों की शराफत
बिक रही थी
लालच के बाजार में
दोस्ती को तरस गया था मै
कठिनाइयों की राह में 
तब तू ही थी जिसने सहारा दे
मेरे ज़िन्दगी से ग़म भुला दिया
खुदगर्ज़ इस दुनिया में
मुझे बेदर्दी बन
जीना सिखा दिया
मुझे बेदर्दी बन
जीना सिखा दिया......

जो कहते है तू बिगडैल है
उन्हें शायद अंदाज़ा नहीं
तेरे रंग-रूप का
तेरे मस्त-मिजाज़ स्वरूप का
अरे तुझमे तो वो बात है
कि दिल तो दिल
पैमाने भी झूम जाते है
तुझे खुद में मिलाकर
तुझे खुद में मिलकर.....

"शबाब" तो बैईमान है
कल-आज-कल कहाँ
किसे पता
पर "शराब" का ऐसा हश्र नहीं
मिली अगर दर्द से
तो उसे भी विहीन कर लिया
उदासीनता को
कोंसो दूर कर दिया....

पर जिन्हें ख़बर नहीं
उन्होंने तुझे गलत कह दिया
उन्हें कैसे बताऊँ
कि ग़म और ज़िन्दगी के बीच की ख़ुशी तू है
जिसे उन लोगो ने नशा कह
अपने से दूर कर दिया
जिसे उन लोगो ने नशा कह
अपने से दूर कर दिया.....

सत्येन्द्र "सत्या"

Friday 20 April 2012

तुम कहाँ हो ???


तुम कहाँ हो ???

जब से तुम ओझल
हुई हो इन आंखो से
दिल ने प्रश्नों
की झड़ी लगा दी
कुछ न कहू इसे
तो बेचैन रहता है
कुछ कहू तो बेकरार हो जाता
तुम्हे पाने की ख़ातिर.......

समझ नहीं पाता हूँ
क्या कहूँ इससे
कि क्यूँ तुम दूर हो
मोहब्बत की तड़प होकर भी
क्यूँ मजबूर हो....

कास दिल भी पहचान पाता
बंधन की बंदिशें और
रिश्तों की उलझनों को
तो इतनी कोशिशों के बाद भी
मै लाचार न होता
इस तरह कभी मेरे
मिलन के 'कलम' से वियोग
की 'कविता' का प्रसार न होता

मिलन के 'कलम' से वियोग
की 'कविता' का प्रसार न होता...

यदि तुम्हारा विवेक
अब भी जीवित है
तो मेरे इस दिल की तसल्ली
को बुझा देना
मुश्किल है मिल के अगर
कुछ कह पाना
तो बस इस बेचैन दिल को
एक बार आवाज़ लगा देना
एक बार आवाज़ लगा देना .......

सत्येन्द्र "सत्या"

Thursday 19 April 2012

"कुदरत के कहर की कम्पंनता"


"कुदरत के कहर की कम्पंनता"

जीवन की विलासिता में पड़
हरियाली को लाल करता गया
विकास का लोभ ऐसा छाया
कि पर्यावरण इसको न भाया....

किन्तु वो भी कब तक
खामोश रहती
कब तक इंसानी क्रूरता
यूँ ही सहती.....

दिखा दी अपनी शक्ति..

प्रकृति के प्रहार से
सब कुछ खो गया
मानवीय विकास
विनाश के "भूकंप" में
सदा के लिए सो गया....

मानवीय विकास
विनाश के "भूकंप" में
सदा के लिए सो गया....

सत्येन्द्र 'सत्या'

Sunday 15 April 2012

गैरों के शहर में मुलज़िम बना दिया !!!


गैरों के शहर में मुलज़िम बना दिया !!!

उसे पाने की चाह में
मै 'गुनाह' करता गया
रुक-रुक कर ही सही
जमाने से लड़ता गया
किन्तु वह अंजान थी
मेरे इन कोशिशों से
दिल की तड़प
प्यार की दूरियों से.........

मोहब्बते-इश्क में
ऐसा डूबा की दोस्त
भी दुश्मन बन गए
दर्द के सैलाब में
सब-के-सब छुट गए
पर उसे एहसास न हुआ
पर उसे एहसास न हुआ......

जो जमाने के संग मिल
अपनी नज़र बदल दी
समझी ना मेरे हालातो को
और कसूरवार कह चल दी.....

मेरी शराफत बदनाम हुई
जिसकी ख़ातिर उसीने
मेरा तमाशा सरे आम किया
मुलज़िम बना दिया
मुझे गैरों के शहर में
जिससे बेपनाह प्यार किया
जिससे बेपनाह प्यार किया........

सत्येन्द्र "सत्या"


Friday 13 April 2012

उधम तुम याद रहोगे........


उधम तुम याद रहोगे
आने वाली कई पुश्तों तक
पंजाब की वादियों से लगा
भारत की हर गलियों तक
उधम तुम याद रहोगे.........

वतन की आज़ादी का
सपना था आँखों में
अंग्रेजों को मार भगाने की
तड़प थी हर साँसों में
देश-भक्ति की ज्वाला
भरी पड़ी थी ह्रदय की नसों में
उधम तुम याद रहोगे.......

जब फंसे भारतीय
डायर के जालों में
खून का मंज़र लगा
लगा पड़ा था
जालियावाला के बागो में
भारत माँ की माटी
भी तब रो पड़ी थी
शहीद सपूतों को ले
अपनी बाहों में.....

किन्तु क्रोध को तुने
छिपा रखा था सिने में
देख बहते अपनों के लहू
जलिया के ज़ंजीरो में.....

अपने उधम के "उद्धम"
से चित्त कर डायर को
दिया अपने बदले को अंजाम
जिसे सुन धरती भी खुश हुई
जिसमे बसा था शहीदों का प्राण
जिसमे बसा था शहीदों का प्राण......

उधम तुम याद रहोगे
आने वाली कई पुश्तों तक
पंजाब की वादियों से लगा
भारत की हर गलियों तक
उधम तुम याद रहोगे.........

सत्येन्द्र "सत्या"

Monday 9 April 2012

"दिल दे दिया पहली मुलाकात में"

"दिल दे दिया पहली मुलाकात में"

जब मंज़िलों की तलाश में
मिले हम एक राह पर
इस अजनबी  शहर में
उस अजीब  बात पर
जवानी का ख़ुमार भी था
अपने पुरे शबाब पर
की मन-मन को भा गया
उस एक मुलाकात पर
उस एक मुलाकात पर....


तुम दूर हो जानकर
दिल उदास बैठा है
प्यासा मन लेकर
नदी के पास बैठा है
तुम्हारे पैरो की आहट
पायलों की खनखनाहट
गूँजती अब भी कानो में....

तुम्हारे शब्दों की माला
हर पल हँसाती रहती है
उदासीनता की राहों में
तुम्हारी शरारत रंग भरती
नफ़रत की मैली दीवारों में
तुम्हारा गुस्सा भी मोम की
तरह पिघल जाता चंचल
नैनों के बहाव में......

मेरा खेलना भी अब
गवारा नहीं तुम्हारे बिना
मेरे दर्द का कोई
सहारा नहीं तुम्हारे बिना
मेरा साहस भी खो जाता है
जब तुम संग नहीं होती

मुझको को अब भी आस  है
तूम जल्द आओगी
दिल की पीड़ा पर
प्रेम की औषधि लगाओगी...

दिल की पीड़ा पर
प्रेम की औषधि लगाओगी.........

सत्येन्द्र "सत्या"

Friday 6 April 2012

"हौसला न कम होने देना"



हौसला न कम होने देना

मिशाल अब भी जल रही है
उस स्वप्न के निर्माण की
जिसके इच्छा में कुर्बान हुए
वो वीर सपूत भारतीय...

रास्तें तो डराते ही है
मंज़िलों की चाह में
फिर 'सत्या' तू क्यूँ
संकोच है कर रहा
नवीनता की बयार में....

सत्येन्द्र "सत्या"

Wednesday 4 April 2012

"उसे कोई समझता नहीं"

"उसे कोई समझता नहीं"

वो अरमानों की ख़ातिर
ज़लालत में भी जीता गया
शर्म होकर भी आँखों में
बेशर्मी के घूंट पीता गया
पर शहरवालों ने कभी
समझी न बेबसी उसकी
जो हर कोई उसे पागल
कह पिटता गया
जो हर कोई उसे पागल
कह पिटता गया....

                                                                   सत्येन्द्र "सत्या"


Tuesday 3 April 2012

जीत से हुँकार भर

रण के मैदान में
जीत से हुँकार भर
शक्ति के सामर्थ से
दुश्मन को पछाड़कर
अपने उर्जा को
बढ़ाता चल..बढ़ाता चल..

तेरी गर्जना से
डरता सारा जहाँ
तुझ पर नतमस्तक
सारी ज़मीं और आसमान
यह मुंबई की तक़दीर है
की तू उसका वीर है
इस सच पर "सचिन"
तू फिर उतर खरा और
गाढ़ दे 'IPL'  में मुंबई का झंडा जरा
गाढ़ दे 'IPL'  में मुंबई का झंडा जरा.....

तुझसे बड़ा न कोई 'शूरमा'
इस युद्ध के मैदान में
तुझसे बड़ा न कोई 'करिश्मा'
इस 'IPL' के मझधार में
तो कर MI को सफल
तो कर MI को सफल.....

सत्येन्द्र "सत्या"


Sunday 1 April 2012

महँगाई-"मोहन" खाय जात है !!!

मँहगाई -"मोहन" खाय जात है !!!

आज अभी-अभी ख़त्म हुई क्लोजिंग की आफ़त से निज़ाद मिली ही थी की श्रीमती जी का फोन आ गया हुक्म था की आते वक़्त जरा विजय सेल्स में "हिटाची" की एक एसी बुक करवाई है उसे पैसे देकर लेते आईएगा...मैंने कहा अरे भाग्यवान इतनी जल्दबाज़ी भी क्या कल छुट्टी है आराम से ले लेंगे तभी उत्तर आया कहीं क्लोजिंग के चक्कर में ये तो नहीं भूल गए की रविवार से नया वित्तीय वर्ष शुरू हो रहा है...बस इतना सुनते ही याद आया १६ मार्च को पेश हुआ दादा का आम बजट जिसमे उत्पाद-शुल्क और सेवा-कर में वृद्धि का फ़रमान था....बस फिर क्या था पुरे रास्ते सोच में डूबा रहा कभी सब्जी-दूध मँहगे होने की चिंता तो कभी पप्पू के फ़ीस की फ़िक्र तो कभी मैडम के आभूषणों की.......क्या करे आम-आदमी बिचारा महँगाई का मारा......

आम आदमी का हाथ दिखा
मँहगाई का हाथ थमा दिया
घोटालो पर घोटाला तुमने किया
भरपाई का बजट हमें पकड़ा दिया
वाह रे सरकार के 'मनमोहन'
स्वंय लचर तो बने रहे
जनता को भी लाचार बना दिया
जनता को भी लाचार बना दिया.......

सत्येन्द्र "सत्या"