
जब वियोग की आग में तपस्या के, अश्रु भी सरलता के मोती बन जाए !
जब कलम की गई कलियों, में भी फूल खिल जाए !
जब दो ह्रदय दूर होकर, भी परस्पर मिलते रहें !
जब दूर होकर भी अम्बर, धरा को अपने प्रेम से भिगोती रहे !
तो बस इसे ही प्यार का, संगम समझाना प्रिये !
तो बस इसे ही प्यार का, संगम समझाना प्रिये !
सत्येन्द्र "सत्या"
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