मेरी इन आँखों का
तुम्हे ख्याल न रहा
जो टूट गई
एक हल्के झटके से
तुम्हारे सहारे
अपनी नज़रो से
ये शहर देखता था
बस्ती,गलियां,बगियाँ
फूलों से सजा
हर मंज़र देखता था
सनम की लिखी चिट्ठी
में स्नेह के शब्द देखता था...
अब तुम ही बताओ
क्या करूँ
कैसे तुम बिन
उन हसीन पलों को जीऊ
तुम्हे बनाने वाले भी
कुछ दिनों की दुहाई
मांगते है
कैसे कहू उनसे
कि,मेरा तुमसे
तुम्हारा-मुझसे
रिश्ता क्या है......
जो हुआ सो हुआ
पर फिर कभी यूँ ही
'क्षतिग्रस्त' न होना
माना तुम हो बड़ी नाज़ुक
पर मेरी 'कवच' हो
बड़ी लचीली पर
मेरे सफ़र की 'मदद' हो
पर मेरी 'कवच' हो
बड़ी लचीली पर
मेरे सफ़र की 'मदद' हो.....
सत्येन्द्र "सत्या"
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