
जब मंज़िलों की तलाश में
मिले हम एक राह पर
इस अजनबी शहर में
उस अजीब बात पर
जवानी का ख़ुमार भी था
अपने पुरे शबाब पर
की मन-मन को भा गया
उस एक मुलाकात पर
उस एक मुलाकात पर....
तुम दूर हो जानकर
दिल उदास बैठा है
प्यासा मन लेकर
नदी के पास बैठा है
तुम्हारे पैरो की आहट
पायलों की खनखनाहट
गूँजती अब भी कानो में....
तुम्हारे शब्दों की माला
हर पल हँसाती रहती है
उदासीनता की राहों में
तुम्हारी शरारत रंग भरती
नफ़रत की मैली दीवारों में
तुम्हारा गुस्सा भी मोम की
तरह पिघल जाता चंचल
नैनों के बहाव में......
मेरा खेलना भी अब
गवारा नहीं तुम्हारे बिना
मेरे दर्द का कोई
सहारा नहीं तुम्हारे बिना
मेरा साहस भी खो जाता है
जब तुम संग नहीं होती
मुझको को अब भी आस है
तूम जल्द आओगी
दिल की पीड़ा पर
प्रेम की औषधि लगाओगी...
दिल की पीड़ा पर
प्रेम की औषधि लगाओगी.........
सत्येन्द्र "सत्या"
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