
आने वाली कई पुश्तों तक
पंजाब की वादियों से लगा
भारत की हर गलियों तक
उधम तुम याद रहोगे.........
वतन की आज़ादी का
सपना था आँखों में
अंग्रेजों को मार भगाने की
तड़प थी हर साँसों में
देश-भक्ति की ज्वाला
भरी पड़ी थी ह्रदय की नसों में
उधम तुम याद रहोगे.......
जब फंसे भारतीय
डायर के जालों में
खून का मंज़र लगा
लगा पड़ा था
जालियावाला के बागो में
भारत माँ की माटी
भी तब रो पड़ी थी
शहीद सपूतों को ले
अपनी बाहों में.....
किन्तु क्रोध को तुने
छिपा रखा था सिने में
देख बहते अपनों के लहू
जलिया के ज़ंजीरो में.....
अपने उधम के "उद्धम"
से चित्त कर डायर को
दिया अपने बदले को अंजाम
जिसे सुन धरती भी खुश हुई
जिसमे बसा था शहीदों का प्राण
जिसमे बसा था शहीदों का प्राण......उधम तुम याद रहोगे
आने वाली कई पुश्तों तक
पंजाब की वादियों से लगा
भारत की हर गलियों तक
उधम तुम याद रहोगे.........
सत्येन्द्र "सत्या"
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