Saturday 21 April 2012

"नशा" कह अपने से दूर कर दिया.....


"नशा" कह अपने से दूर कर दिया..... 

कोई तुझे बदनाम करे
तो क्यूँ चुप रहू मै
जब मै तनहा था
तो तुने साथ दिया
शरीफों की शराफत
बिक रही थी
लालच के बाजार में
दोस्ती को तरस गया था मै
कठिनाइयों की राह में 
तब तू ही थी जिसने सहारा दे
मेरे ज़िन्दगी से ग़म भुला दिया
खुदगर्ज़ इस दुनिया में
मुझे बेदर्दी बन
जीना सिखा दिया
मुझे बेदर्दी बन
जीना सिखा दिया......

जो कहते है तू बिगडैल है
उन्हें शायद अंदाज़ा नहीं
तेरे रंग-रूप का
तेरे मस्त-मिजाज़ स्वरूप का
अरे तुझमे तो वो बात है
कि दिल तो दिल
पैमाने भी झूम जाते है
तुझे खुद में मिलाकर
तुझे खुद में मिलकर.....

"शबाब" तो बैईमान है
कल-आज-कल कहाँ
किसे पता
पर "शराब" का ऐसा हश्र नहीं
मिली अगर दर्द से
तो उसे भी विहीन कर लिया
उदासीनता को
कोंसो दूर कर दिया....

पर जिन्हें ख़बर नहीं
उन्होंने तुझे गलत कह दिया
उन्हें कैसे बताऊँ
कि ग़म और ज़िन्दगी के बीच की ख़ुशी तू है
जिसे उन लोगो ने नशा कह
अपने से दूर कर दिया
जिसे उन लोगो ने नशा कह
अपने से दूर कर दिया.....

सत्येन्द्र "सत्या"

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