
तुम कहाँ हो ???
जब से तुम ओझल
हुई हो इन आंखो से
दिल ने प्रश्नों
की झड़ी लगा दी
कुछ न कहू इसे
तो बेचैन रहता है
कुछ कहू तो बेकरार हो जाता
तुम्हे पाने की ख़ातिर.......
समझ नहीं पाता हूँ
क्या कहूँ इससे
कि क्यूँ तुम दूर हो
मोहब्बत की तड़प होकर भी
क्यूँ मजबूर हो....
बंधन की बंदिशें और
रिश्तों की उलझनों को
तो इतनी कोशिशों के बाद भी
मै लाचार न होता
इस तरह कभी मेरे
मिलन के 'कलम' से वियोग
की 'कविता' का प्रसार न होता
मिलन के 'कलम' से वियोग
की 'कविता' का प्रसार न होता...
यदि तुम्हारा विवेक
अब भी जीवित है
तो मेरे इस दिल की तसल्ली
को बुझा देना
मुश्किल है मिल के अगर
कुछ कह पाना
तो बस इस बेचैन दिल को
एक बार आवाज़ लगा देना
एक बार आवाज़ लगा देना .......
सत्येन्द्र "सत्या"
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