"उसे कोई समझता नहीं"
"उसे कोई समझता नहीं"
वो अरमानों की ख़ातिर
ज़लालत में भी जीता गया
शर्म होकर भी आँखों में
बेशर्मी के घूंट पीता गया
पर शहरवालों ने कभी
समझी न बेबसी उसकी
जो हर कोई उसे पागल
कह पिटता गया
जो हर कोई उसे पागल
कह पिटता गया....
सत्येन्द्र "सत्या"
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