गैरों के शहर में मुलज़िम बना दिया !!!
उसे पाने की चाह में
मै 'गुनाह' करता गया
रुक-रुक कर ही सही
जमाने से लड़ता गया
किन्तु वह अंजान थी
मेरे इन कोशिशों से
दिल की तड़प
प्यार की दूरियों से.........
मोहब्बते-इश्क में
ऐसा डूबा की दोस्त
भी दुश्मन बन गए
दर्द के सैलाब में
सब-के-सब छुट गए
पर उसे एहसास न हुआ
पर उसे एहसास न हुआ......
जो जमाने के संग मिल
अपनी नज़र बदल दी
समझी ना मेरे हालातो को
और कसूरवार कह चल दी.....
मेरी शराफत बदनाम हुई
जिसकी ख़ातिर उसीने
मेरा तमाशा सरे आम किया
मुलज़िम बना दिया
मुझे गैरों के शहर में
जिससे बेपनाह प्यार किया
जिससे बेपनाह प्यार किया........
सत्येन्द्र "सत्या"
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