Thursday 19 April 2012

"कुदरत के कहर की कम्पंनता"


"कुदरत के कहर की कम्पंनता"

जीवन की विलासिता में पड़
हरियाली को लाल करता गया
विकास का लोभ ऐसा छाया
कि पर्यावरण इसको न भाया....

किन्तु वो भी कब तक
खामोश रहती
कब तक इंसानी क्रूरता
यूँ ही सहती.....

दिखा दी अपनी शक्ति..

प्रकृति के प्रहार से
सब कुछ खो गया
मानवीय विकास
विनाश के "भूकंप" में
सदा के लिए सो गया....

मानवीय विकास
विनाश के "भूकंप" में
सदा के लिए सो गया....

सत्येन्द्र 'सत्या'

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