Friday 9 December 2011

"संग ना बदला mi के रंग बदल गए" "शायद जिन्हें मै भुला ना सकू "


"संग ना बदला mi  के रंग बदल गए"

बदलने को हमारी क्लास बदल गई !
पर हमारी दोस्ती कि मिठास ना बदली !
ज्ञान और अभ्यास के पटल बदल गए !
पर मेंटर कि दृढ़ता और पत्रकारिता कि राह ना बदली !
और सफ़र ओखला से ग्रेटर कैलाश पहुँच ही गया !
पर मंजिल तक पहुचने  कि प्यास ना बुझी !

"शायद जिन्हें मै भुला ना सकू "

ढाबे के वो पराठे याद आएंगे !
ओखला कि बातें याद आयेंगी !
वो हस - हस कर चिल्लाना !
कुछ कहने से पहले ना जाने क्यूँ घबराना !
मेंटर कि चीख से फूटबाल कि किक तक !
अपनों कि यारी से mi campus कि वारी तक !

अब वो सब अनछुए किस्से बन जायेंगे !
जिन्हें चाहकर भी हम भुला ना पाएँगे !
जानता हूं, जिन्दंगी का सफ़र हर मोड़ से होकर जाता है !
पर इस मोड़ के मुसाफिर इतने हसीन होंगे इसका अंदाज़ा ना था !
इसका अंदाज़ा ना था.......................................................

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