Friday 16 December 2011

लोकपाल से इतनी दहशत क्यूँ ???????????????

                              "अन्ना मुखौटा नहीं जनता की बुलंद आवाज़ है "




2 जी घोटाला, CWG घोटाला, आदर्श घोटाला, मधु कोड़ा का घोटाला देश में घोटालों की ऐसी फेहरिश्त है जो की  ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती, और सरकार भी इनपर अंकुश लगाने में असमर्थ नज़र आने लगे तो सवाल उठता है आम आदमी क्या करें ? जो खाने की चिजों से लेकर पेट्रोल की बढ़ती कीमतों से त्राह-त्राह कर रहा हो, भ्रष्टाचार के आंतक से खुद को ठगा महसूस करता हो!  इतने परेशनियो के बाद उसे उम्मीद की एक किरण लोकपाल के रूप में नज़र आती है वो चाहता है की लोकपाल पर बहस हो और उसे अम्लीय जामा पहनाते हुए सदन के दोनों सत्रों में पास किया जाए!


 लोकपाल की जागरूकता अन्ना और उनकी टीम ने पुरे देशभर में फैलाई और बताया की कैसे यह कदम भ्रष्टाचार को दूर रखने में सहायक होगा, और इसे लाने के लिए ११ दिन का अनशन किया इस मुहीम को ऐसा जनसमर्थन मिला की सड़क से संसद तक भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का आक्रोश देखने को मिला मै भी इससे अछूता ना था, करता भी क्या पापा ने पॉकेट मनी जो कम कर दी!बस शुरू हो गया "मी अन्ना हजारे आहे"के नारों के साथ ,इस मसले पर अन्ना की टीम ने हर राजनितिक पार्टियों से भी बातचीत की, सरकार को मानसून सत्र से लेकर शीतकालीन सत्र तक का मौका दिया किन्तु अब तक इसका हल नहीं निकला!और अब आलम यह है की अन्ना और उनकी टीम को ही निशाना बनाया जा रहा है, की अन्ना अपनी मनमानी कर रहे है! पर सोचनेवाली बात है की जिसने इस मुहीम की शुरुवात की क्या वह इसका सूत्रधार नहीं बन सकता बार बार समय की दुहाई दी जाती है पहले इसे लटका कर रखा गया  उसके बाद स्थायी समिति के पास भेजा गया अब स्थायी समिति संसद पर निर्णय छोड़ रही है! समझ नहीं आता की कौन क्या कर रहा?? कौन क्या चाह रहा?? क्या वाकई सरकार इससे डर गई है अगर हाँ तो क्यूँ ?????? और नहीं तो इतनी देरी क्यूँ कर रही है! अब तो हालत ये है की सरकार के नियत पर ही सवाल उठने लगे है!

लोकपाल के अंतर्गत प्रधानमंत्री,सीबीआई,(क श्रेणी) के नौकरशाहों को लेकर विवाद जस के तस बने है! किन्तु सोचनेवाली बात यह की क्या ये मांगे उचित नहीं है? या प्रधानमंत्री को खुद पर भरोसा नहीं, पर 2 जी घोटाले और cvc appointment में प्रधानमंत्री की भूमिका भी घेरे में आयी थी!तो ऐसे में सवाल उठाना वाजिब है की प्रधानमंत्री को भी इसमें क्यूँ न शामिल किया जाये,रही बात सीबीआई की तो हम सब जानते है इस देश में सीबीआई की दशा क्या है,कैसे सरकारें कठपुतली की तरह इन्हें नाचती हैं जिसने आरुशी के हत्या की ऐसी जाँच की,कि वह murder mystery आज तक न सुलझ पाई और भंवरी का हाल तो हम देख ही रहे हैं और पिछले दिनों मध्य प्रदेश के एक नौकरशाह की करतूत तो टीवी पर ही उजागर हो गई कि कैसे एक द्वारपाल करोड़ों की कमाई कर रहा है! तो अब बताइए की क्या इन सब मांगों पर अन्ना का अडिग रहना ज़िद्दीपन को दर्शाता है या फिर एक मजबूत लोकपाल के लिए संघर्ष करते उन विचारों जो को जो एक नवीन भारत का सपना देख रहा है जिस पर करोड़ो लोगो कि उम्मीदें टिकी है..........


भ्रष्टाचार से लड़ने की लौं जलाई हमने!
इन्होंने कहा हम लोगों को भरमा रहे है!
अरे तुमने रोका है भारत की प्रगति को !
हम तो इसे नवीन भारत की ओर ले जा रहे है....................
                            
                                                                                                       सत्येन्द्र "सत्या"
                                                             




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