
मै इठलाती चली फुर्राती चली!
हँसती चली हँसाती चली !
अपनी जवानी पर इतराती चली!
मुझसे लोग दिल लगाते गए !
मै उन्हें बसाती गयी, बसाती गयी !
घोड़े के रथ से मेट्रो और बस तक !
मेरे अपने निखारते गए मै निखरती गयी!
अब black - white से रंगीन हो गई हूँ !
भारत के विकाश की मशीन हो गई हूँ !
आज शुक्रगुज़ार हूँ उनका (दिल्ली वाशियों का )!
जिन्नोहने ने अपनी मेहनत से मुझे सींचा !
दुःख में रोने को कन्धा दिया, सुख में संग हँसे !
उनकी दया से मेरे विरासत को आज सदी हो गए !
उनकी दया से मेरे विरासत को आज सदी हो गए.................................................................
सत्येन्द्र "सत्या"
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