
इज़ाज़त थी तुम्हारी तब मैंने इज़हार किया !
जन्नत नसीब हो मुझे इस जहाँ में !
कि मैंने तुमसे बेपनाह प्यार किया !
किन्तु जरुरत क्या थी वहां पर जाने कि !
कुछ तो वक़्त का लिहाज़ किया होता !
बेबस न होकर साहस का एहसास किया होता !
तो गम यंहा भी न होता गम वहां भी न होता !
और उल्ल्फत में रहकर शरीफ हो जाऊ मै !
ऐसी फितरत नहीं हमारी !
मोहब्बत करना आता है, पर मोहब्बत को आंजमा!
सकु ऐसी हसरत नहीं हमारी कास तुम इस रिश्ते को !
महफूज़ करने कि कोशिश कि होती !
प्यार के राह पर महत्तवकांक्षा कि दुरी को दूर कि होती !
तो कसक यंहां भी न होता कसक वहां भी न होता !
हमारे बीच कोई जोर आजमाईश भी न होती !
आज तुम मेरी होती पराई ना कहलाती !
सज़ सजा कर लाता मै, डोली तेरे आँगन में !
पलकों में बिछाकर ले जाता मै अपनी बाँहों में !
तो जुदा मै भी ना होता जुदा तू भी ना होती !
तो जुदा मै भी ना होता जुदा तू भी ना होती.......................................
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