Monday 6 February 2012

                               यह कैसी है बेबसी !!!!
                                    (कि, कोई कुछ भी कहे मै मान लेता हूँ !)

  
कहाँ गया मेरा विवेक,
कहाँ गई मेरी पहचान,
जो मेरी सहनशीलता पर,
हावी दूसरों का जूठा ज्ञान,

क्यूँ मेरी बुद्धि,
मुर्खता कि दासी हो गई है,
क्यूँ मेरी कौशलता,
मुझसे निराश हो गई है,
क्यूँ  मेरे निर्णय पर ही,
हक मेरा रहता नहीं,

अब,कब तक बिगड़ते रिश्तो को यूँ ही निभाता रहूँगा,
कब तक रोकर भी मुस्कुराता रहूँगा ,
कब तक मै तुम्हारी बातों में आता रहूँगा,
कब तक हर बात को सिने में छुपता रहूँगा,

आज, एक उफान ने सब कुछ हिला दिया,
दिल के अरमानो को जुबाँ पर ला दिया,
अब यह कहने से डरूंगा नहीं,
रिश्ते टूटते है तो टूट जाएँ,
उनकी परवाह करूँगा नहीं,

अब कहूँगा मै, सुनोगे तुम,
जो ये सूर्य की उगती किरणे,
मेरे  होसले  की,
नई उम्मीद है...........................




                                                                                                              सत्येन्द्र "सत्या"


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