
किताब समीप होकर भी
शब्द अर्थहीन थे
दिशा का पता नहीं
दशा नादानी से रंगीन थे
इतिहास पूरा खाली का खाली
भूगोल ब्रह्माण्ड से अलग
गणित का ज्ञान नहीं
जो था दिमाग शून्य से परिपक्व
तभी मिले गुरु
किया ज्ञान का अध्याय शुरू
मिली शिक्षा की सीख
मिटी इन्द्रियों की भूख
दिखी सफलता की डगर
खुशियों का नगर
ज्ञान का न कोई द्वार है
वह आकाश से है बड़ा
पाताल तक है धरा
जिसकी सीमा है इच्छा
जिसका प्रकाश सूर्य से प्रखर
तब ज्ञात हुआ
इस नादान मन को
कि क्यूँ ज़रूरी है
आत्मा में एक गुरु का घर
आत्मा में एक गुरु का घर !!!
सत्या "नादान"
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