Saturday 8 September 2012

"कोयले की कालिख़"


"कोयले की कालिख़"

वाह रे 'कालिख़'
तेरा 'रंग' भी कितना बेमिसाल
कि तुझसे लग
'कोयला' भी 'काला' हो गया
ना मन - 'मोहन' बोले
ना 'हाथ' दिखा
'कमल' खिल-खिलाकर हंसा
'साइकल' ने भी की सेंध मारी
'लेफ्ट-राईट' सब 'सेंटर' पर भारी
'कैग-बम' से
संसद भी हारी
देखते ही देखते
कुछ एैसा हुआ 'विस्फ़ोट'
ना 'संसद' चली ना 'सांसद' चले
जनता के 'पैसे' को लगी 'चोट'
'कालिख़' के 'कलंक' में
सब कुछ खो गया
और बिन जले ही 'कोयला'
'मुल्क' में आग का 'ज्वाला' हो गया !!!
'मुल्क' में आग का 'ज्वाला' हो गया !!!

सत्या "नादान"

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