Monday 17 September 2012

"इंतज़ार"


"इंतज़ार"

शाम से रात हो गई
'मय' से मेरी मुलाक़ात हो गई
जाम पर जाम छलकने लगे
मेरे नैना तेरे चाहत को
तरसने लगे
किन्तु मेरी किस्मत
ही एक पहेली थी
कि ना 'शराब' चढ़ी
ना 'शबनम' मिली
रात की रंगत भी बेरंग होने लगी
नीद आँखों से खोने लगी
नीद आँखों से खोने लगी...

तेरे इंतज़ार की तड़प में
आंसुओं ने बदन को तार-तार कर दिया
बसंत की कश्ती में
सादगी का समन्दर भर दिया
और मै यह नहीं कहता
कि तेरे आने की हसरत में
बैठा रहा रात भर
मै तो बस सोचता हूँ
कि इस 'नादान' दिल ने
क्यूँ दिल लगी कर ली
क्यूँ दिल लगी कर ली !!!

सत्या 'नादान'

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