"इसे हार कहूँ या लड़ने की जिज्ञासा"
कुछ खोकर मै कुछ पाने आया
सपनो को सजाने आया
शहर से शहर की दुरी बड़ी थी
मन की आशा उस तरफ खड़ी थी
दिल में बेचैनी की ललक उठ रही थी
माया छोड़ मै उसे पाने आया
इच्छा की प्यास बुझाने आया
कुछ खोकर मै कुछ पाने आया.....
उससे रिश्ते बनाने के लिए
खुद को तपाता रहा
सुबह का घर से निकला
शाम तक पसीना बहाता रहा
कि अब तो मिल जाएगी वो
जिसकी चाहत में मै आया हूँ
पर अफ़सोस दूरियां जितनी घटी
फ़ासले उतने बढ़ गए
पर अफ़सोस दूरियां जितनी घटी
फ़ासले उतने बढ़ गए......
और करीब आकर भी उसे पा ना सका
चाहकर भी उसे अपना ना सका
गुस्से से बार-बार बौखलाता रहा
उलझाते प्रश्नों से स्वयं को समझाता रहा
तभी उत्तर की एक घटा आई
मुझे उसका रहस्य बतलाई
तब एहसास हुआ अपनी नादानी का
कि जिसे पाने के लिए तड़पता रहा
वो न अजुबां थी ना पहेली थी
बस मै ही वक़्त को समझ न सका
कि वह गति में मुझसे तेज़ है
कि वह गति में मुझसे तेज़ है !!!
सत्येन्द्र "सत्या"
कुछ खोकर मै कुछ पाने आया
सपनो को सजाने आया
शहर से शहर की दुरी बड़ी थी
मन की आशा उस तरफ खड़ी थी
दिल में बेचैनी की ललक उठ रही थी
माया छोड़ मै उसे पाने आया
इच्छा की प्यास बुझाने आया
कुछ खोकर मै कुछ पाने आया.....
उससे रिश्ते बनाने के लिए
खुद को तपाता रहा
सुबह का घर से निकला
शाम तक पसीना बहाता रहा
कि अब तो मिल जाएगी वो
जिसकी चाहत में मै आया हूँ
पर अफ़सोस दूरियां जितनी घटी
फ़ासले उतने बढ़ गए
पर अफ़सोस दूरियां जितनी घटी
फ़ासले उतने बढ़ गए......
और करीब आकर भी उसे पा ना सका
चाहकर भी उसे अपना ना सका
गुस्से से बार-बार बौखलाता रहा
उलझाते प्रश्नों से स्वयं को समझाता रहा
तभी उत्तर की एक घटा आई
मुझे उसका रहस्य बतलाई
तब एहसास हुआ अपनी नादानी का
कि जिसे पाने के लिए तड़पता रहा
वो न अजुबां थी ना पहेली थी
बस मै ही वक़्त को समझ न सका
कि वह गति में मुझसे तेज़ है
कि वह गति में मुझसे तेज़ है !!!
सत्येन्द्र "सत्या"
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