Sunday 12 August 2012

"स्वतंत्रता के '65' साल"

"स्वतंत्रता के '65' साल"

भारत की आज़ादी को आज 65 वर्ष हो गए 15 अगस्त1947 को लहराते तिरंगे से निकला स्वतंत्रता का वह संखनाद जिसने आज़ाद भारत की ऐसी पृष्ठभूमि रखी जहाँ खोने को कुछ नहीं पर पाने को पूरा आकाश था ! आज़ादी के पश्चात समय बदला लोग बदले और समय के साथ लोगों की मानसिकताएं भी बदली जिसकी बदौलत भारत ने सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक क्षेत्र में वह मुकाम छुआ....... कि कल का अतिपिछड़ा भारत दुनिया में नई शक्ति के रूप में उभर सम्पूर्ण विश्व के मानचित्र  पटल पर अपनी एक ऐसी छाप छोड़ी जिसे नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता..... किन्तु क्रमश: इस बदलाव के दौर में जो चीज़ शायद अब भी नहीं बदली वह है उस ध्वज के प्रति भारतीयों की सद्भावना समर्पण और त्याग जिसकी आज़ादी के ख़ातिर देश के उन वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुती दे हमें स्वतंत्रता दिलाई और आज़ादी के पश्चात तिरंगे की शान के लिए कई जवानों ने ख़ुशी से शहादत का दामन थाम लिया!

बीते ६ दशकों में कई उतार चढ़ाव आए अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा किन्तु हर वक्त सफलता का जज़्बा हार की काया पर भारी पड़ता गया और हम परत दर परत कामयाबी के सफ़र पर बढ़ते चले गए.....इसी कड़ी में भारत की भुजाओं को मज़बूती प्रदान करते ब्रह्मोस अग्नि, त्रिशूल पुरे विश्व में भारतीय सेना का गौरव बढ़ाते हैं जिनकी मारक क्षमता इतनी कि इनके परिक्षण मात्र से कुछ मुल्कों को बेचैनी के पसीने निकलने लगे और हम आज उन देशों के कतार में शुमार हो गए जिन्हें उँगलियों पर गिना जा सके (इंटरकांटिनेंटल ब्लास्टिक मिसाइल ग्रुप)..वहीं खेलों में कभी ओलिम्पिक मेडलों को तरसते भारत ने लन्दन ओलिप्म्पिक में ६ मेडल जीत अब तक का सबसे उम्दा प्रदर्शन कर दिखाया और लन्दन मिशाल बनी भारत के उस ख़ुशी की जहाँ कई दशकों से मेडल के सूखे का साया था........

पर इस मुल्क की विडंबना देखिए कि जब समूचा देश  इस ज़द्दोजहद में लगा था कि हम अपने भविष्य को और भव्य कैसे बनाए उस समय कुछ लोग तुलनात्मक चश्मा धारण किए इस बात को बताने की फ़िराक में ज़्यादा रहते हैं कि हमने अब तक क्या खोया....हम अमेरिका से इतने पीछे क्यूँ हैं?..चीन हमें हर बार आँख क्यूँ दिखाता है?....प्रश्न.....प्रश्न......और मात्र प्रश्न?..आलम यह हो जाता है कि प्रश्नों का ऐसा जमावड़ा लग जाता हैं कि उत्तर की आकंक्षा रखने वाला शख्स भी इतना मायूस हो जाता.....कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता और धीरे-धीरे इन उदासीन आत्माओं की संख्या इतनी हो जाती है कि लगता है देश में अराजकता सा माहौल है...मै कत्थई यह नहीं कह रहा कि भारत जैसे लोतांत्रिक देश में आलोचना करना उचित नहीं है न ही रामदेव-अन्ना सरीखे लोगो की निंदा करने की कोशिश कर रहा हूँ ! मै तो बल्कि उनकी नज़र को उस दिशा में ले जाना चाहता हूँ जहाँ उम्मीदों का सवेरा..अरमानों की रात होती है...अर्थात अगर हम उस कड़वी सच्चाई से रूबरू हों तो समझ आएगा कि इतनी बड़ी कायनात लेकर भी चीन को उन तिब्बतियों से डर लगता है जो हर दफ़ा उनके अधिकारों को कुचलता रहता है किन्तु भारत का शौर्य देखिए हमने तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा को अपना शरणार्थी बनाकर नहीं बल्कि मेहमान के रूप में अपने देश में सम्मान दिया.....यह वह मुल्क है जहाँ मोदी विकास के लिए कम बल्कि मानवीय नरसंहार के लिए अधिक प्रचलित हैं. वहीं चीन के विकास की दिवार ही मानवीय मूल्यों की लाशों पर खड़ी है.....अमेरिका ने तो १७ वीं शताब्दी में ही आज़ादी प्राप्त कर ली थी किन्तु नस्लवाद का असर देखिये कि २००७ में ओबामा की जीत को एक वर्ग की जीत के रूप में देखा गया और हिलेरी आज भी आडवाणी (प्रधानमंत्री की ख्वाईश) की तरह सपना सजोए बैठी हैं कि कभी तो वह पहली अमेरकी महिला राष्ट्रपति बनेंगी   ..WTC पर हमला अमेरिकी आज़ादी पर सबसे बड़ा आघात था पर खुद को विश्व का सबसे ज़्यादा शक्तिशाली देश कहनेवाले अमेरिका लादेन को ढूंढ़ निकालने में १० साल लगा दिया.और वह मिला भी तो उस मुल्क में जो हमारा दोस्त हो या न पर पड़ोसी तो है और पड़ोसी से झगड़ा कब तक कभी कभी आप आर्थिक-राजनीतिक तौर पर कितने भी शक्तिवान क्यूँ ना हो जाएँ पर दुनियां की नज़र में भौगोलिक राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए तो पड़ोसी को साथ लेकर चलना ही होगा......तो बस आज आज़ादी के इस अवसर पर एक संकल्प ले अपनी उर्जा को इस तरह से उपयोग करने का कि आने वाली दशके-सदियाँ ख़ुशी और समृधि से भरी हों.........

मै इससे पूरी तरह वाक़िब हूँ कि देश में आज़ादी के ६५ साल बाद भी कुछ लोग भूखे सोते हैं...आज भी माँ का लाडला किताबों से कोसों दूर हैं.......और नन्ही उम्र में काम करता है.कि घर में रोटी आ सके  ..भ्रष्टाचार का सांप दिन प्रतिदिन मोटा होता जा रहा है....और सिस्टम लोकतांत्रिक मिशाल का बस तमगा बन के रह गया है.....जिसे स्वार्थ के खेल में हमारे राजनेता  झुनझुने की तरह बजाकर मज़ा लेते हैं ........मै अपने लेख में इन सबका जिक्र कर सकता था...पर आज स्वतंत्रता का वह पर्व है जिसे पाने के लिए हमने शहादत की बड़ी कीमत चुकाई है इसलिए आज का दिन हैं कि हम उन वीरों को याद करें और अपनी स्वतंत्रता पर गर्व करें.......


कभी छोटा था तो मास्टर जी के लिखे लेख को मंच पर पढ़ने के लिए हफ्ते भर पहले से रटना शुरू कर देता क्यूंकि उस वक्त इतना सक्षम नहीं था कि शब्दों के भावार्थ को समझ सकूँ...........परन्तु आज उम्र की नादानी से बाहर निकल 'स्वतंत्रता के 65 साल' पर लिखना शुरू किया तो एहसास हुआ कि भारत की व्याख्या इतनी व्यापक है कि, जिसे पन्नों पर उतारने के लिए अनगिनत कलमों को अपने स्याहियों की कुर्बानी देनी पड़ेगी !

सत्येन्द्र "सत्या"

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