यूँ चुप न रहो...

मेरे कलम की स्याही ख़त्म हो गई
तुम्हे शब्दों में बयां करते करते
तुम हो की अब भी खामोश बैठी हो
मुझसे बेपनाह प्यार करते करते...
घड़ियाँ गिन गिन
कलियाँ बिन बिन
फ़ूलों की सौगात लाती हो
पर जब मै पूछता हूँ
कि ये सुंगंधित पुष्प किसके लिए
तो न जाने क्यूँ शर्माती हो...
आँखों की ख़ुशी
मन की उमंग को
अपने भीतर छिपा
क्यूँ ह्रदय घात कर जाती हो
अरे कुछ तो कहो यूँ चुप न रहो
अरे कुछ तो कहो यूँ चुप न रहो
तुम्हारा कहना मेरा सुनना
इस चंचल मन को बहुत भाता है
पर अब तुम
बसंत के गीत भी नहीं गाती
जिन्हें सुनकर
कभी अपनी पीड़ा भूलता था..
कभी अपनी पीड़ा भूलता था........
सत्येंद्र "सत्या"

मेरे कलम की स्याही ख़त्म हो गई
तुम्हे शब्दों में बयां करते करते
तुम हो की अब भी खामोश बैठी हो
मुझसे बेपनाह प्यार करते करते...
घड़ियाँ गिन गिन
कलियाँ बिन बिन
फ़ूलों की सौगात लाती हो
पर जब मै पूछता हूँ
कि ये सुंगंधित पुष्प किसके लिए
तो न जाने क्यूँ शर्माती हो...
आँखों की ख़ुशी
मन की उमंग को
अपने भीतर छिपा
क्यूँ ह्रदय घात कर जाती हो
अरे कुछ तो कहो यूँ चुप न रहो
अरे कुछ तो कहो यूँ चुप न रहो
तुम्हारा कहना मेरा सुनना
इस चंचल मन को बहुत भाता है
पर अब तुम
बसंत के गीत भी नहीं गाती
जिन्हें सुनकर
कभी अपनी पीड़ा भूलता था..
कभी अपनी पीड़ा भूलता था........
सत्येंद्र "सत्या"
No comments:
Post a Comment