Friday 4 April 2014

"फंदा" ही "हार" है "हैवानों" का !!!

"फंदा" ही "हार" है "हैवानों" का !!!

मिट्टी को मैला किया
पायल को तोड़कर
शक्ति शर्मसार खड़ी
आंसूओ को घोटकर
मै माया हूँ मगर महफूज़ थी
जुर्म के जात से
मेरी दुनियाँ उसकी रंगत
सब शहर की मुस्कान थे
पर वो आँखें हया ही खा गई
हवस के हाथ से
आज डरी है धरा
डरा है बादल
चिड़िया अपनी ही वादियों में
उड़ती संभाल के
मेरी फ़िज़ा फ़िज़ा बदल गई
दहशत के आगाज़ से
मेरी खामोशियाँ अब खौल रही
रोज़ सहना रोज़ मरना
अब नहीं बर्दाश्त है
मौत ही तेरी एक मंज़िल
गुनाह सोच का जो साथ है
बनना है मुझे वो ज़मीं वो सफ़र
जहाँ सुकून साँसों का एहसास है
देकर चोट रहना ज़िंदा
ये मुमकिन नहीं मेरे शहर में
तुझे सूली चढ़ना तो था ही
तुझे सूली चढ़ना तो था ही……

सत्या "नादाँ"

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