नज़्म (नज़र के निशान)
जलते अरमानों के साथ चलना
ये कैसा सफ़र है
शिकवा सिसक सिसक आँखों से बहता
ख्वाहिशों पर ज़िद का कैसा असर है
साहिल शाम संजीदा करे अब क़हर सा लगे लगा
लहरों में साँसों की तड़प ये कैसा पहर है
मुराद पूरी ना हुई या कोशिशें थीं अधूरी
जज़्बातों का ज़हन में ज़हर सा बनता कैसा घर है
ख़ामोश लब्ज़ जिस्म में गूंजती व्यथाएँ
दिल सहने की सीमाओं का कैसा शरहद है
ज़र्रा ज़र्रा सजा है खुदगर्ज़ फ़िज़ा से
ख़ुशी के शहर में मायूसी का ये कैसा पल है
ज़रूरत में भी ज़ुर्रत ना हुई हक़ीम तक जाने की
ज़िन्दगी जुदा जुदा मौत मझधार पड़ी
दूरियां रह रह कर दस्तक़ देती चाहतों पर
वक़्त ठहरता नहीं लम्हा लम्हा रुका रुका सा
कल कल था आज भी कल है
इंतज़ार-ए-आरज़ू का ये कैसा सब्र है
जलते अरमानों के साथ चलना
ये कैसा सफ़र है.......ये कैसा सफ़र है......ये कैसा सफ़र है
सत्या "नादाँ"
जलते अरमानों के साथ चलना
ये कैसा सफ़र है
शिकवा सिसक सिसक आँखों से बहता
ख्वाहिशों पर ज़िद का कैसा असर है
साहिल शाम संजीदा करे अब क़हर सा लगे लगा
लहरों में साँसों की तड़प ये कैसा पहर है
मुराद पूरी ना हुई या कोशिशें थीं अधूरी
जज़्बातों का ज़हन में ज़हर सा बनता कैसा घर है
ख़ामोश लब्ज़ जिस्म में गूंजती व्यथाएँ
दिल सहने की सीमाओं का कैसा शरहद है
ज़र्रा ज़र्रा सजा है खुदगर्ज़ फ़िज़ा से
ख़ुशी के शहर में मायूसी का ये कैसा पल है
ज़रूरत में भी ज़ुर्रत ना हुई हक़ीम तक जाने की
ज़िन्दगी जुदा जुदा मौत मझधार पड़ी
दूरियां रह रह कर दस्तक़ देती चाहतों पर
वक़्त ठहरता नहीं लम्हा लम्हा रुका रुका सा
कल कल था आज भी कल है
इंतज़ार-ए-आरज़ू का ये कैसा सब्र है
जलते अरमानों के साथ चलना
ये कैसा सफ़र है.......ये कैसा सफ़र है......ये कैसा सफ़र है
सत्या "नादाँ"
बहुत जबरदस्त...
ReplyDeletethanks bhai
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