Tuesday 26 November 2013

वो किसकी ख़ता थी कैसी थी साज़िश ???

Uss Roz Madhoshi Mein Dube Khushnuma Shaam Ko Kya Maalum Tha.... Kee Jis Samandar Ki Mahak Uski Raaton Ko Dilkash Banaati Thi... Ab Usse Bhi Kisi Ki Nazar Lag Gai Hai....Nazar Bhi Aisi Ki Shaher Ki Shararat Pal Bhar Mein Dahashat Ki Shanti Ban Gai ... Barbaadi Ke Mansubon Ne Laashon Ka Aisa Jamghat Lagaya... Kee Khoon Se Bhigi Zameen Ko Dekh Baadal Ke Bhi Aansu Nikal Gaye...Zarre Zarre Mein Bandishon Ki Mayusi Thi.... Azaadi Shaher Ki Aisi Chidhiya Ka Naam Tha.... Jiske Pankhon Ko Retkar Koi Unhe Udane Ko Chhod De......

वो किसकी ख़ता थी कैसी थी साज़िश
डरा डरा मौसम ख़ौफ़ज़दा आँखें
शहर की साख को जकड़े हुए वो
क़तरा क़तरा सड़क पर खून ए हक़ीक़त
अमन के बादलों पर मंडराती मौतें
वो किसकी ख़ता थी कैसी थी साज़िश

समंदर भी शामिल सियासत भी शामिल
बर्बादी के मंज़र में शहर उमड़ा पड़ा था
दर्द ही दर्द देती वो दहशत
बारूदों में बसर होता वो ताज का हिस्सा
सीएसटी की शोर में अब लाशें ही लाशें
आंसुओं में डूबा ख़ुशी ख़ुशी का नक्शा
वो किसकी ख़ता थी कैसी थी साज़िश

आतंक की आँख को भाती मुंबई
कभी ट्रेन तो कभी बस में धमका
कहाँ है वो आज़ादी कहाँ है वो रौनक
नज़र नज़र को बस ख़ुदा से इबादत
कि मौत मंज़िल में ना आए कभी
कि मौत मंज़िल में ना आए कभी

अपनी शहादत से मेरी लाज बचा ली वीरों ने
मुझे आज भी दर्द है उन शेरों के खोने का......


सत्या "नादाँ"

No comments:

Post a Comment