Saturday 9 November 2013

आवाज़ क्यूँ है दबी हुई...जब सामने शैतान है ?

आवाज़ क्यूँ है दबी हुई जब सामने शैतान है 

आवाज़ क्यूँ है दबी हुई जब सामने शैतान है
खो रही है आबरू लूट रहा हिंदुस्तान है
सुख गई खेतियाँ उजड़ रहा किसान है
मालिक बने है चोर सारे
धर दबोचा मैदान है
पब्लिक बिचारी पिट रही "आदर्श" ईमान है
आवाज़ क्यूँ है दबी हुई जब सामने शैतान है

शोर की शब्दावली से
शहर - शहर घमासान है
एक भूख एक भय एक भार
आज तक डटा हुआ है
फिर भी भव्यता की भौ भौ कार है
काम कौड़ियों के भी पुरे नहीं
बने जनता के नाथ हैं
आवाज़ क्यूँ है दबी हुई जब सामने शैतान है

 मर रहा या मार रहा
लोकतंत्र को तार रहा
वोट व्यथा है या प्रथा है
संसद की क्या दशा है
बोल - बोल बेबसी के
बस यही लाल किले की कथा है


खुली आँखे देखती अंधियारे
दिया दामन से बुझा बुझा रखा है
वक़्त उम्र भर काटता मुझको
सहमा सहमा शहर का नक्शा है
आवाज़ क्यूँ है दबी हुई
आवाज़ क्यूँ है दबी हुई  ???

सत्या "नादाँ"

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