Wednesday 19 December 2012

"दामिनी" बनी "द्रोपती" !!!

"दामिनी" बनी "द्रोपती" !!!


ये कैसी अजीब आवाज़ें है
जो सिर्फ चीख पर चीखती हैं
कहाँ थी यें
जब मुझे नोंच रहे थे दरिंदे
शहर था सफ़र था सड़क था
सब के सब उनके ही थे बसिंदे
फिर भी मै द्रोपती बनी
और द्रोपती भी क्यूँ कहूँ मै खुद को
वह तो शतरंज के मात की शौगात थी
पर यहाँ ना तो कोई खेल था
ना ही जंग थी मेरी उनसे
तो क्यूँ आज
अबला-असहाय-अधमरी
सी पड़ी हुई हूँ इस बिस्तर पर
शर्मसार मै-खामोश मै दर्द मुझे है
तो खोया कौन
वो जो सोते हुए भी चिल्ला रहे हैं
जुर्म के शहर मे
सांत्वना के आंसू बहा रहे हैं
जो कहते है डर मुझे भी लगता है
ऐसे मंज़रों से
जानकर भी हवस के साँप को
दूध पिला रहे हैं

जानकर भी हवस के साँप को
दूध पिला रहे हैं !!!


यह किस दहशत की घड़ी है
कि मुल्क का मुक्कदर
बनाने वाले ही
बेबसी के गीत गाने लगे
क़ानून कंगनों मे जकड़ी
ज़ालिम जुर्म की
दास्ताँ सजाने लगे ?????




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