Monday 3 December 2012

"ग़ुमशुदा दीवारें"

"ग़ुमशुदा दीवारें"

क्या भूल गए तुम्हे वह सब
तुम जिनकी बनावट हो
अगर हाँ तो क्यूँ ?
और नहीं तो क्यूँ ?
इन दीवारों पर सन्नाटा है
ना ही अब ख़ुशी है
ना ही वो ग़म
जिसे कभी हमने संग बांटा है
कहीं ऐसा तो नहीं
कि हम सिर्फ़ ज़रूरतों के मुसफ़िर थे
सफ़र ने बेगानों से अपना बना दिया
वो हमदर्दी वो प्यार
वो गुस्सा वो ललकार
सब के सब बनावटी रंग थे
जो दूरियों के दरम्याँ बह गए
और हक़ीकत में
अतीत की यादों में खोई
वर्तमान के ख़ामोशी में रोती
भविष्य के सवालों में उलझी
तुम ही तनहा रह गई
तुम ही तनहा रह गई !!!

सत्या  "नादाँ"





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