Tuesday 6 February 2018

"विकास" विख़्यात विश्व में... और "आनंद" घर में ही अज्ञात है !

चाय पकौड़े की खातीरदारी
अब लोकतंत्र में ख़ास हुई
भाईचारा भौकाल हो गया
मज़हबी हर मकान हुई
ज़मीन साफ़
ज़बान गन्दी
झाड़ू बस एक
स्वच्छ भारत की पहचान हुई 
इस सियासत ने "माँ" को भी नहीं बख्शा
लहू लतपथ रोज़ बेटों का
सरहद ख़ूनी घमासान हुई
2G... 2G... 2G...
क्या ज़ोर... ज़ोर का नारा था
अब जी.. जी.. जी.. गा रहे
यह कैसी "मन से मन" की बात थी
बजट ने बेबस कर दी
घर में दो जून की रोटी
विकास.. विख़्यात विश्व में
और आनंद घर में ही अज्ञात है...

सत्या "नादाँ"

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