अधमरी "अनामिका"
सर्द सुबह की उस रोज़
घर के दरवाज़े से दूर
बिजली के तारों को थामे
गली के अंधियारों में खड़ा
गिरते पानी को निहारता
कि एक ज़ोर की... चीख़
ज़र्रे.. ज़र्रे.. को झकझोरती
तेज़ी से निकलते … आती
आवाज़ का असर भी इतना
कि.. लगा किसी दहशत ने
द्वार पे... दस्तक़ दे दी
मंज़र देख उमड़ी भीड़
अभी जिस्म को सहला ही रही थी
कि... अनामिका
ख़ामोशी के आग़ोश में सो गई....
अनामिका...
ख़ुशी के संगम में सराबोर
वो हर दिन... हर पल
सपनों को समीप होता देख
शब्दों के आसमाँ सजा
आहिस्ता... आहिस्ता...
अरमानों के शहर बसाती...
अनामिका...
पहर दर पहर
तस्वीर बन आँखों में छाप छोड़ती
अदभुत नक्काशियों में ढली
शगुन की वो अंगूठियाँ
अब आंसू बन नज़रों में चुभती
कि...
अनामिका ये क्या से क्या हो गया ???
सत्या "नादाँ"
सर्द सुबह की उस रोज़
घर के दरवाज़े से दूर
बिजली के तारों को थामे
गली के अंधियारों में खड़ा
गिरते पानी को निहारता
कि एक ज़ोर की... चीख़
ज़र्रे.. ज़र्रे.. को झकझोरती
तेज़ी से निकलते … आती
आवाज़ का असर भी इतना
कि.. लगा किसी दहशत ने
द्वार पे... दस्तक़ दे दी
मंज़र देख उमड़ी भीड़
अभी जिस्म को सहला ही रही थी
कि... अनामिका
ख़ामोशी के आग़ोश में सो गई....
अनामिका...
ख़ुशी के संगम में सराबोर
वो हर दिन... हर पल
सपनों को समीप होता देख
शब्दों के आसमाँ सजा
आहिस्ता... आहिस्ता...
अरमानों के शहर बसाती...
अनामिका...
पहर दर पहर
तस्वीर बन आँखों में छाप छोड़ती
अदभुत नक्काशियों में ढली
शगुन की वो अंगूठियाँ
अब आंसू बन नज़रों में चुभती
कि...
अनामिका ये क्या से क्या हो गया ???
सत्या "नादाँ"
No comments:
Post a Comment