तुमने क्या दिया ???
ना सोच ना सभ्यता ना सियासत
तो वो शिक्षा क्या थी
जो तुम देते रहे
ना बदला है कुछ..ना बदलने की बयार बाकी है
समय सिमटता गया सायों में
रूप में अब भी रोशनी का श्रृंगार बाकी है
तो तुमने क्या दिया....तो तुमने क्या दिया ???
अर्थ भी तुम राज भी तुम
धरा पर धरी हर शस्त्र की
फ़िर भी आज अर्जुन अधुरा है
इस कलयुगी रण के कुरुक्षेत्र में
चन्द्रगुप्त चल ही नहीं पा रहा
दर-दर दुराचारिता के फ़ैले रेत में
तो तुमने क्या दिया....तो तुमने क्या दिया ???
मै आज क्यूँ तुम पर अभिमान करूँ
वर्तमान को रोता भविष्य को खोता
क्यूँ तुम्हारी गाथा का गुणगान करूँ
मै मरा नहीं मूर्छित पड़ा हूँ
हवाओं में फैले इन दहशती शोर से
ये कैसी सीख़ और सबक है शिक्षा की
कि शर्म आँखों में रह पाती नहीं
गली सड़क सुनसान पड़ी
माँ की बिटिया बहन की पायल
अब इन राहों में जाती नहीं
तो तुमने क्या दिया....तो तुमने क्या दिया ???
तुम ये ना कहना कि कसूर उनका है
बिगड़ते मौसम का सुरूर ही ऐसा है
तुमसे लग बढ़ा होता मुल्क़ का हर बच्चा
फिर क्यूँ जवानी अधमरी सोच सस्ता है
आँख होकर भी अंधी सारी दिशाएँ
चिराग आज तक बुझा-बुझा सा रहता है
चिराग आज तक बुझा-बुझा सा रहता है
तो तुमने क्या दिया....तो तुमने क्या दिया ???
सत्या "नादाँ"
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