Sunday 11 August 2013

"नज़्म " वो पल....

"नज़्म "  वो पल


आँखों को सब याद है नफ़रत के सिवा
ज़िंदगी बिन पढ़ी किताब है मोहब्बत के सिवा
लम्हा-लम्हा वक़्त गुज़र ही जाएगा
मेरी बेचैनी तुम्हारी ख़ामोशी के साथ
कभी आंसू कभी दर्द
दोनों बह ही जाएँगे
रह-रह कर मरती
तमन्नाओं के साथ
और मेरी तलाश का
हर सफ़र अधुरा है
तुम्हे भूल जाने के बाद

उम्मीद थी कि वक़्त बदलेगा कभी
पर किस्मत भी साथ बदल जाएगी
इसका अंदाज़ा ना था
कभी शाम साहिल पर साथ बितती
अब डगर - डगर डर का बसेरा है
धूप दूर से दूर तक खिली है
पर इस ज़िंदगी में अब भी
उस जुदाई का घना अँधेरा है

प्यार की वो परछाईयाँ
जो ढाली थी इन दीवारों पर
चुभ-चुभ कर पूछती हैं आँखों से
कहाँ ग़ुमनाम हो गया
जो मेरे आँचल का साया है


सत्या "नादाँ"

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