Tuesday 1 January 2013

"भविष्य - भुत के भूचाल से परे हो"

"भविष्य - भुत के भूचाल से परे हो"

मै जानता हूँ
अतीत का वो अँधियारा पल
निर्भयता का दमन होता स्वर
सिसक-सिसक कर रोती वो आँखें
तख्तियों में छिपी बेज़ुबां सांसे
मुल्क़ का वो दर्दनाक सच
जिसने खोल दी घूघंट की पट
मै भुला नहीं हूँ कुछ
किन्तु चाहता भी नहीं
कि भविष्य भी कभी
देखे.....भूत की ऐसी यादें
इसलिए वर्तमान में
नई किरण से आँखें मिला रहा हूँ
मर्द की मर्यादा जीवित रहे
देश से मिटे पुरुष-प्रधानता का सच
इसलिए शब्दों की शीतलता
से आशा के गीत गा रहा हूँ
नया साल है नया पहर है
क्यूँ न हम ले एक नया संकल्प
विचार अटल है विश्व पटल है
नारी...मंजिल की राह-डगर है
सभ्यता...सम्मान की मज़बूत पकड़ है
इस पकड़ को कभी हम ना होने दे कमज़ोर
इस पकड़ को कभी हम ना होने दे कमज़ोर !!!!

सत्या "नादान"

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